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Monday, 21 November 2022

यदि कभी आपका भगवान् से साक्षात्कार हो जाये तो आपको उसे खुश हो होकर सारी दुनिया को नहीं बताना चाहिये।

 



.             यदि कभी आपका भगवान् से साक्षात्कार हो जाये तो आपको उसे खुश हो होकर सारी दुनिया को नहीं बताना चाहिये। 

       जानते हैं क्यों ?

       आइये जानते हैं क्या कहते हैं  सदी के महान सन्त "श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज"।👇🏻


                      "भगवान् के दर्शन की बात"


          एक बालक ने श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज से पूछा कि आपको भगवान के दर्शन हुए हैं क्या? जवाब देते हुए तर्क की मुद्रा में श्रीस्वामीजी महाराज बोले कि तुम अपना खजाना बताते हो क्या? बालक समझ भी नहीं पाया और बोल भी नहीं पाया कि अब क्या कहना चाहिये। फिर किसीने बालक को वहीं रोक दिया।

          श्रीस्वामीजी महाराज का कहना है कि 'जब लोग अपने लौकिक धन को भी (हरेक को) बताना नहीं चाहते, बताने योग्य नहीं समझते, तो फिर अलौकिक धन, पारमार्थिक खजाना क्या बताने योग्य है! अर्थात् हरेक को बताने योग्य नहीं है।' लोगों को अगर कह दिया जाय कि हाँ मेरे को भगवान के दर्शन हुए हैं तो लोगों के जँचेगी नहीं, उल्टे तर्क पैदा होगा। दोषदृष्टि करेंगे। (इससे उनका नुकसान होगा)। (लोगों को बताने से विघ्न बाधाएँ भी आती है।)

        सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दका ने कहा है कि भक्त प्रह्लाद की भक्ति में इतनी बाधाएँ इसलिये आयीं कि उन्होंने भक्ति को (लोगों के सामने) प्रकट कर दिया था। (अगर प्रकट न करते तो इतनी बाधाएँ नहीं आतीं)। श्रीसेठजी ने भी गुप्त रीति से ही साधन किया है और सिद्धि पायी है। चूरू की हवेली के ऊपर कमरे में उनको चतुर्भुज भगवान विष्णु के दर्शन हुए थे।

         श्रीस्वामीजी महाराज ने वहाँ पधार कर वो जगह बताई थी कि यहाँ श्रीसेठजी को भगवान के दर्शन हुए थे। श्रीसेठजी मुँह पर चद्दर ओढ़े सो रहे थे उस समय भगवान ने दर्शन दिये। ऊपर चद्दर ओढ़ी होने पर भी भगवान दिखलायी कैसे पड़ रहे हैं ? उन्होंने चद्दर हटा कर देखा तो भगवान वैसे ही दिखाई दिये जैसे चद्दर के भीतर से (साफ) दीख रहे थे। बीच में चद्दर की आड़ होने पर  भी भगवान के दीखने में कोई फर्क नहीं पड़ा। श्रीसेठजी कहते हैं कि ऐसे चाहे बीच में पहाड़ भी आ जाय तो भी भगवान के दीखने में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह बात प्रसिद्ध है कि श्रीसेठजी ने कई लोगों की मौजूदगी में भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार को भगवान के दर्शन करवाये थे। भाईजी से जब कहा गया कि भगवान के चरण पकड़ो। तब उन्होंने चरण पकड़ने के लिये हाथ बढ़ाये तो वो हाथ श्रीसेठजी के चरणों में गये।

          श्रीसेठजी ने स्वामीजी महाराज से कहा कि आप अपनी भगवत्प्राप्ति (वाली सिद्धि) लोगों में प्रकट न करें तो अच्छा रहेगा क्योंकि (अयोग्य) लोग पीछे पड़ जाते हैं कि मेरे को भी करवा दो, हमारे को भी भगवान के दर्शन करवा दो आदि-आदि। मैंने प्रकट कर दिया था जिसके कारण मेरे को भी मुश्किल का सामना करना पड़ा।

          अपने को साधक मानने में हानि नहीं है, हानि तो सिद्ध मानने में है। अपने को सिद्ध मानने में वहम भी हो सकता है पर साधक मानने में क्या वहम होगा। जो अपने को साधक मानता है वह उन्नति करता ही चला जाता है। वह सिद्ध मानकर रुकता नहीं कि अब मेरे को क्या करना है, जो करना था सो तो कर लिया। इस प्रकार पारमार्थिक लाभ गोपनीय रखने में ही फायदा है।

         ऐसे अधिकारी मिलने दुर्लभ हैं जिनको ऐसी रहस्य की बातें बतायीं जायँ। अधिकारी को तो महापुरुष अत्यन्त गोपनीय रहस्य भी बता देते हैं।


               - श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज

                             


                          "जय श्री गौरीशंकर"


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भवसागर से पार होने के लिये मनुष्य शरीर रूपी सुन्दर नौका मिल गई है। सतर्क रहो कहीं ऐसा न हो कि वासना की भँवर में पड़कर नौका डूब जाय।

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स्वयं कमाओ, स्वयं खाओ यह प्रकृति है । (रजो गुण)

दूसरा कमाए, तुम छीन कर खाओ यह विकृती है।(तमो गुण )

स्वयं कमाओ सबको खिलाओ, यह देविक संस्कृति हैं ! (सतो गुण )


** देविक प्रवृतियों को धारण (Perception ) करे तभी आप देवलोक पाने के अधिकारी बनेंगे **


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हमेशा ध्यान में रखिये ---

" आप एक शुद्ध चेतना है यानि स्व ऊर्जा से प्रकाशित आत्मा ! माया (अज्ञान ) ने आपकी आत्मा के शुद्ध स्वरुप को छीन रखा है ! अतः माया ( अज्ञान ) से पीछा छुडाइये और शुद्ध चेतना को प्राप्त कर परमानन्द का सुख भोगिए !

विशेष,,,, आपके अज्ञान को दूर कर अग्निहोत्र के इस ग्यान के प्रकाश को दे पाऊ /फेला पाऊ, यही मेरा स्वप्न है. यह आचरण मेरी निष्काम /निःस्वार्थ सोच का परिणाम है l प्रभु मेरी सहायता करे / मेरा मार्ग प्रशस्त करे.


मुख्य संचालक देवलोक अग्निहोत्र


जिस प्रकार एक छोटे से बीज़ में विशाल वट वृक्ष समाया होता है उसी प्रकार आप में अनंत क्षमताएं समायी हुईं हैं l आवश्यकता है उस ज्ञान की / अपना बौधिक एवं शैक्षणिक स्तर को उन्नत करने की जिसे प्राप्त कर आप महानता प्राप्त कर सके !


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आओ हम सब वृक्ष लगाऐं धरती का श्रृंगार करें।

मातृभूमि को प्रतिपल महकाऐं,जीवन से हम प्रेम करें।।

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प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन ईश्वर की श्रेष्ठ आराधना है !एक पेड़ लगाना, सौ गायों का दान देने के समान है lपीपल का पेड़ लगाने से व्यक्ति को सेंकड़ों यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है l


छान्दोग्यउपनिषद् में उद्दालक ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतु से आत्मा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वृक्ष जीवात्मा से ओतप्रोत होते हैं और मनुष्यों की भाँति सुख-दु:ख की अनुभूति करते हैं। हिन्दू दर्शन में एक वृक्ष की मनुष्य के दस पुत्रों से तुलना की गई है-

'दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:।

दशहृद सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।। '

इस्लामी शिक्षा में पेड़ लगाने और वातावरण को हराभरा रखने पर जोर दिया गया है। पेड़ लगाने को सदका अथवा पुण्य का काम कहा गया है। पेड़ को पानी देना किसी मोमिन को पानी पिलाने के समान बताया गया है।


जय गो गंगा गायत्री माता की 🙏🏼🙏🏼

         "

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