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Friday, 23 September 2022

तुलसीदास

 


वह 48 किलो का अकेला दुबला पतला संत जिसके पास संपत्ति के नाम पर कुछ नहीं हाथ में कमंडल 5 मीटर पहनने को कपड़ा चार तुलसी की माला और रहने को अशोक के पेड़ की छांव मगर शक्ति इतनी कि पूरे भारतवर्ष पर तानाशाही एकतरफा शासन करने वाले मुगल सम्राट को सर झुकाने पर मजबूर कर दिया। 


बात 15 वी शताब्दी की है जिसका उल्लेख आज भी इतिहास में मौजूद है सबसे बड़ी बात कि वह इतिहास किसी हिंदू ने नहीं बल्कि मुगलों ने लिखा है। समय के साथ इतिहास को बदला तो नहीं गया मगर छुपाया जरूर गया 1947 तक यह पाठ्यक्रम में मौजूद था मगर 1950 में संविधान बनने के बाद इसे पाठ्यक्रम से हटा दिया गया।


इस महान संत का नाम है तुलसीदास 15 वी शताब्दी में इन्होंने वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण का हिंदी में अनुवाद कर रामचरितमानस लिखा। उस समय भारत में मुगलों का राज था और अकबर उस समय पूरे भारतवर्ष का मुगल बादशाह था। उस दोर में कोई मीडिया अखबार नहीं था सिर्फ माउथ पब्लिसिटी के आधार पर तुलसीदास जी से रामायण सुनने दूर-दूर से लाखों लोग आने लगे।


उस समय बादशाह अकबर अपने आप को खुदा समझता था दूर-दूर से लोग उस के दरबार में अपनी परेशानी लेकर आते थे और बादशाह उनका निवारण करता था एक दिन बादशाह अपनी सेना के साथ जा रहा था तभी उसने देखा कि लाखों की संख्या में लोग एक झुंड बनाकर बैठे हैं और एक दुबला पतला सा व्यक्ति उन्हें कुछ सुना रहा है अकबर ने सेनापति टोडरमल को बोला कि हमारे दरबार से बड़ा दरबार यह कौन लगा कर बैठा है।


टोडरमल ने कहा कि यह एक संत फकीर है जो राम की कहानी सुनाता है और कविताएं बनाता है इसकी कविताएं बहुत अच्छी है अकबर बादशाह ने तुरंत आदेश दिया कि इसे अपने दरबार में बुलाओ। बादशाह का हुकुम पाते ही दूसरे दिन सैनिक गए और तुलसीदास जी को उठाकर अकबर के दरबार में दे आए। अकबर ने उनका मान सम्मान करते हुए दरबार में बिठाया और उनको कहा कि आप मेरे ऊपर भी कविताएं लिखें तुलसीदास ने तुरंत मना कर दिया यह सुनकर अकबर को गुस्सा आ गया अकबर ने उनको बेड़ीयो में जकड़ कर जेल में बंद करवा दिया।


जेल में बंद तुलसीदास जी को एक महीना हो गया उनकी पूजा पाठ बंद हो गई 1 दिन प्रातः काल जेल में ही बैठे बैठे उन्होंने हनुमान चालीसा की रचना कर दी और उसे जोर से गाया उनके हनुमान चालीसा गाते ही लाखों की संख्या में बंदर इकट्ठा हो गए और अकबर के महल पर आक्रमण कर दिया।

जहांगीर ने उस घटना का विवरण करते हुए इतिहास में लिखा है कि इससे पहले कभी इतने बंदर नहीं देखे गए जितना उस दिन देखे गए थे उन्होंने चंद घंटे में ही महल को उजाड़ दिया सैनिकों को चोटें पहुंचाई अकबर बादशाह का ताज फेंक दिया।


जब जेल प्रहरी ने बादशाह तक यह समाचार पहुंचाया कि यह सब तुलसीदास की वजह से हुआ है उन्होंने सुबह ही बोल दिया था कि जिस तरह रावण की लंका बर्बाद हुई थी उसी तरह से सूर्य डूबने से पहले तुम्हारे बादशाह का महल तहस-नहस हो जाएगा यह बात सुनते ही तुरंत बादशाह ने तुलसीदास को जेल से निकाला और उन से विनती की के इन बंदरों को रोक लो आप जो बोलोगे वह करूंगा तब जाकर बंदर वापस गए।


उस घटना के बाद अकबर बादशाह ने तुलसीदास को सम्मान सहित रिहा किया और उनके कहने पर ही उस दौर में राम सीता और हनुमान के चांदी और सोने के सिक्के जारी किए थे। साथ ही अकबर ने अपने महल में एक मंदिर भी बनाया था जो आज भी मौजूद है।

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