दशानन मंदिर: यहां होती है रावण की पूजा, साल में सिर्फ एक दिन खुलता है मंदिर
उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक ऐसा मंदिर है जहां रावण की पूजा की जाती है। कानपुर का यह दशानन मंदिर सिर्फ दशहरे वाले दिन ही खोला जाता है और रावण दहन के बाद इसे बंद कर दिया जाता है। विजय दशमी के दिन सुबह श्रृंगार और पूजन के साथ ही दूध, दही, घृत, शहद, चंदन, गंगा जल आदि से दशानन का अभिषेक किया गया। विजय दशमी के दिन लंकेश के दर्शन को यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
दशानन मंदिर का इतिहास
बताया जाता है कि स्व. गुरु प्रसाद शुक्ला ने करीब 150 साल पहले मंदिरों की स्थापना कराई थी। तब उन्होंने मां छिन्नमस्ता का मंदिर और कैलाश मंदिर की स्थापना कराई थी। मंदिर में मां छिन्नमस्ता के साथ ही मां काली, मां तारा , षोडशी, भैरवी, भुनेश्वरी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला महाविद्या के साथ ही दुर्गा जी, जया, विजया, भद्रकाली , अन्नपूर्णा, नारायणी, यशोविद्या, ब्रह्माणी, पार्वती, श्री विद्या, देवसेना, जगतधात्री आदि देवियां यहां विराजमान हैं। इसके अलावा शक्ति के भक्त के रूप में यहां रावण की प्रतिमा स्थापित की गई।
मंदिर में है दशानन की 10 सिर वाली प्रतिमा
मंदिर में दशानन की 10 सिर वाली प्रतिमा है। दशानन का फूलों से श्रृंगार किया जाता है। सरसों के तेल का दीपक जलाया कर आरोग्यता, बल , बुद्धि का वरदान मांगा जाता है। पहले तो नवरात्र की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि को छिन्नमस्ता मंदिर के पट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते थे, लेकिन अब इन तिथियों पर मंदिर प्रबंधन ही भगवती का पूजन करता है। यहां दूर-दराज से लोग दशानन की पूजा करने आते हैं।
क्या है मान्यता ?
श्रद्धालुओं का मानना है कि रावण एक महान विद्वान भी था। ऐसे में वह रावण की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। कुल लोगों का यह भी मानना है कि रावण की आरती करने के बाद उनकी इच्छाएं पूरी होती है
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