Breaking

Post Top Ad

Your Ad Spot

Thursday, 10 February 2022

अघोरी साधु जीवित रहते हुए ही अपना अंतिम संस्कार कर देते हैं



परम्परा है कि नागा संन्यासी बनने की दीक्षा लेने के दौरान संस्कार के सोलह पिण्ड के अलावा एक पिण्ड खुद का भी कराया जाता है उसके पीछे कारण यह होता है कि जो भी एक बार नागा संन्यासी बनता है फिर उसके देहांत होने पर या तो उसका शरीर पानी में बहा दिया जाता है या फिर उन्हें मिट्टी के हवाले कर दिया जाता है। नागाओं का दाह संस्कार नहीं होता है।

   संन्यासी दीक्षा लेने वालों का पहले मुंडन किया जाता है उसके बाद हिमाद्री के दस स्नान कराए जाते हैं फिर सभी तर्पण विधी पूरी करके खुद का पिण्डदान करते हैं। सालों तक सांसारिक सुख भोगकर परिवार के साथ जिंदगी जीने वालो को संन्यास की राह पर जाते देखने के दौरान उनके परिवार के लोग भी इस पूरी प्रक्रिया के साक्षी बनते हैं और उनके सामने ही उनके जीवन की ज्योति नागाओं के तपते अखंड़ जीवन के होम में हमेशा-हमेशा के लिए एकदीप्त हो जाएगी। जानकारी के अनुसार इस सिंहस्थ में भी जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंदजी महाराज नागाओं की दीक्षा कार्यक्रम के दौरान मौजूद रह सकते हैं।

 अघोरी साधु जीवित रहते हुए ही अपना अंतिम संस्कार कर देते हैं. अघोरी को साधु बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले अपना अंतिम संस्कार करना होता है. अघोरी पूरे तरीके से परिवार से दूर रहकर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और इस वक्त ये अपने परिवार को भी त्याग देने का प्रण लेते हैं. अंतिम संस्कार के बाद ये परिजनों और बाकी दुनिया के लिए भी ये मृत हो जाते हैं.

No comments:

Post a Comment

Post Top Ad

Your Ad Spot