काशीनरेश को शाप
तत्कालीन काशीनरेश महाराज चेतसिंह शिवभक्त थे। वे अपने महल में एक शिवालय का निर्माण करा रहे थे। आज उसकी प्राणप्रतिष्ठा थी। सारा राजमहल सजा धजा था। स्वयं महाराज घूम घूम कर सारी व्यवस्था देख रहे थे।
काशी के सभी गणमान्य लोग महल में उपस्थित थे। सारे साधू संत भी बुलाये गए थे। पहरेदारों को सख्त आदेश थे कि कोई अवांछनीय व्यक्ति इस शुभ अवसर पर महल में न आने पाए।
अचानक महाराज चेतसिंह की नजर सामने खड़े एक अस्तव्यस्त वेशभूषा वाले जटाजूट धारी साधू पर पड़ी। उसे देखते ही राजा क्रोधित होकर बोले, “इस नरपिशाच को किसने अंदर आने दिया? इसे तुरंत बाहर निकालो।”
यह सुनकर वह सन्यासी भी क्रोधित हो गया। सन्यासी का मेघगर्जन स्वर पूरे महल में गूंज उठा, “काशीनरेश! तुझे अपनी वीरता और वैभव का घमंड हो गया है। तूने एक अघोरी बाबा का अपमान किया है। अब शीघ्र ही तेरी वीरता और वैभव दोनों का पतन होगा।”
“जिस किले और महल में तू रह रहा है। यहां उल्लू और चमगादड़ रहेंगे। कबूतर बीट करेंगे। काशी में म्लेक्षों का राज होगा। काशी का राजवंश आज के बाद संतानहीन होगा। सदा सर्वदा के लिए, यह एक अघोरी का श्राप है।”
यह कहकर वह अघोरी बाबा हवा के झोंके की तरह गायब हो गया। वह अघोरी कोई और नहीं अघोरेश्वर बाबा कीनाराम थे। महाराज चेतसिंह के निजी सचिव सदानंद बक्शी baba kinaram की शक्तियों से परिचित थे।
वे बाबा के आश्रम पहुंचे और राजा को क्षमा करने की प्रार्थना की। लेकिन कीनाराम बाबा ने कहा कि अब बात जुबान से निकल चुकी है। यह सत्य होकर रहेगी। तब सदानंद ने कहा, “बाबा! हम लोगों का क्या होगा?”
बाबा ने उत्तर दिया, “जब तक तुम्हारे वंश के लोग अपने नाम के साथ ‘आनंद’ शब्द लगाते रहेंगे। तब तक तुम्हारा वंश अनादि काल तक चलता रहेगा। कालांतर में उन्हीं के वंशज डॉ0 संपूर्णानंद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।”
अब काशीनरेश का हाल सुनिये। थोड़े समय बाद अंग्रेजों ने काशी पर हमला किया। जिसमें महाराज चेत सिंह को शिवाले का किला छोड़ कर भागना पड़ा। काशी पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। वह महल निर्जन और सुनसान हो गया। वहां सचमुच उल्लू और चमगादड़ रहने लगे।
आज भी वहां इन्हीं पक्षियों का डेरा है। बाबा कीनाराम के श्राप के अनुसार ही काशी का राजवंश संतान के लिए तरस गया। लगभग 200 वर्षों तक काशी राजवंश गोद ले लेकर चलता रहा।
बाद के राजाओं ने बहुत हवन, अनुष्ठान कराए। सिद्धों, संतों से शापमुक्ति की प्रार्थना की। लेकिन कोई शाप का प्रभाव खत्म नहीं कर पाया। कालांतर में काशी के सर्वाधिक योग्य, जनप्रिय एवं भक्त राजा विभूतिनारायण सिंह ने बाबा कीनाराम के उत्तराधिकारी महासिद्ध अघोरेश्वर भगवान राम के चरणों में बैठकर शापमुक्ति की प्रार्थना की।
द्रवित होकर उन्होंने शाप के प्रभाव को कुछ कम कर दिया और कहा, “इसी गद्दी पर ग्यारहवें उत्तराधिकारी के रूप में स्वयं बाबा कीनाराम 9 वर्ष की अवस्था में आरूढ़ होंगे। जब वे तीस वर्ष के होंगे। तब उनकी कृपा से काशी राजवंश शापमुक्त होगा।
वह दिन 10 फरवरी सन 1978 को आया। जब महाराज बाबा सिद्धार्थ गौतम अघोरपंथ की सर्वोच्च गद्दी पर मात्र 9 वर्ष की अवस्था में विभूषित हुए। उसके बाद सन 2000 में काशी राजवंश शापमुक्त हुआ। 200 वर्ष बाद पहली संतान का जन्म हुआ।
ऐसे चमत्कारी सिद्ध संत बाबा कीनाराम की जीवनी का अध्ययन आज की इस पोस्ट में हम करेंगे।
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