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Wednesday, 20 October 2021

भगवान शिव ने बताई थी कलयुग की 5 बड़ी बातें, जिसने जान ली वह हमेशा रहेगा खुश।🌺



 🌺भगवान शिव ने बताई थी कलयुग की 5 बड़ी बातें, जिसने जान ली वह हमेशा रहेगा खुश।🌺


भगवान अंतर्यामी हैं, वह सब जानते हैं। इसीलिए हिन्दू ग्रंथो के अनुसार माना जाता है कि भगवान शिव ने 5 ऐसी बाते मां पार्वती को बताई थी, जो कलयुग के लोगो के लिए बेहद काम की हो सकती है।

आइए उन पांच बातों के विषय में जानते हैं–

१= एक बार मां पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि मानव का सबसे बड़ा गुण क्या है? मानव सबसे बड़ा पाप कौन सा करता है और सबसे बड़ा धर्म क्या है ?

भगवान शिव ने कहा    -"नास्ति सत्यात् परो नानृतात् पातकं परम्।"  दुनिया में मान-सम्मान कमाना और हमेशा सत्य वचन बोलना सबसे बड़ा गुण है !

  इसके विपरीत मनुष्य के लिए सबसे बड़ा पाप है असत्य बोलना और उसका साथ देना। अतः आपको हमेशा सच्चाई का साथ देने वाले लोगो के साथ रहना चाहिए तथा स्वयं को भी सत्य की राह पर ही चलना चाहिए।

2. दूसरी बात जो शिव जी ने मां पार्वती को बताई थी कि मनुष्य को हमेशा अपने कार्यों का साक्षी बनना चाहिए। जब कोई व्यक्ति बुरे कर्म करता है तथा अन्याय की राह पर चलता है तो वह यह सोचकर आगे बढ़ता जाता है कि कोई उसे नहीं देख रहा। लेकिन उसे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह एक बड़ा पापी है इसका गवाह वह खुद ही है।

3. शिव जी के अनुसार मनुष्य को हमेशा उसके कर्मों के अनुसार ही फल भोगना पड़ता है। यदि कर्म अच्छे होंगे तो परिणाम भी अच्छा होगा और अगर कर्म बुरे होंगे तो उसका परिणाम भी बुरा ही मिलेगा। इसीलिए भूलकर भी अपने मन में किसी का अहित करने के विषय में सोचना भी नहीं चाहिए।

4. भगवान शिव ने पार्वती जी से बताया कि यदि मनुष्य किसी व्यक्ति, परिस्थिति या अपने आप से बहुत लगाव रखता है तो वह कभी जीवन में सफल नहीं हो सकता। क्योंकि इन सब के लगाव के कारण वह एक माया जाल में उलझा रहता है।

5. भगवान शिव कहते हैं कि मनुष्य को अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए। अन्यथा मनुष्य अपनी इच्छाओं को इतना बढ़ा लेता है कि उनका पूरा होना मुश्किल होता है, जिससे उसे दुख की प्राप्ति होती है। साथ ही मनुष्य को अपनी जरूरत और इच्छाओं में फर्क समझना चाहिए और एक शांतिपूर्ण जिंदगी बितानी चाहिए।

             सभी तरह के माया जालों से बचने का केवल एक उपाय है कि मानव शरीर की क्षणभंगुरता को समझा जाए और अपने मस्तिष्क को उसी अनुसार ढाला जाए.

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धर्मशील व्यक्ति ,,,,,,,

जिमि सरिता सागर महँ जाहीं l

जद्यपि ताहि कामना नाहीं ll

तिमि सुख सम्पति बिनहिं बुलाये l

धर्मशील पहँ जाइ सुहाये ll

जैसे सरिता (नदी ) उबड-खाबड़, पथरीले स्थानों को पार करते हुए पूर्ण रूपेण निष्काम भाव से समुद्र में जा मिलती है, उसी प्रकार धर्म-रथ पर आसीन मनुष्य के पास उसके न चाहते हुए भी समस्त सुख-सम्पत्ति, रिद्धियाँ-सिद्धियाँ स्वत: आ जाती हैं, सत्य तो यह है कि वे उसकी दासिता ग्रहण करने के लिए लालायित रहती है ल

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भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।

याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥2॥

श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप माता पार्वती जी और श्री शंकर जी की मैं वंदना करता हूँ,

""**जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख पाते॥2॥""**

वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्‌।

यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥

अर्थात = ज्ञानमय, नित्य, शंकर रूपी गुरु की मैं वन्दना करता हूँ, जिनके आश्रित होने से ही टेढ़ा चन्द्रमा भी सर्वत्र वन्दित होता है॥3॥

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माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः । प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट ।।

अर्थात् गाय रुद्रो की माता ,वसुओ की पुत्री , अदिति पुत्रो की बहन और घृतरूप अमृत का खजाना है अतः प्रत्येक विचारशील पुरुष को मैंने यही समझाकर कहा है कि निरपराध एवं अवध्य गौ का वध न करो ।

यत्र गावः प्रसन्नाः स्युः प्रसन्नास्तत्र सम्पदः। यत्र गावो विषण्णाः स्युर्विषण्णास्तत्र सम्पदः।।

अर्थात जहाँ गाय प्रसन्न रहती है ,वहां सभी संपत्तियां प्रसन्न रहती है । जहाँ गाय दुःख पाती है , वहां सारी सम्पदाये दुखी हो जाती है ।।

गौ माता के विषय में श्रीमदभागवतमहापुराण में कहा गया है - वेदादिर्वेदमाता च पौरुषं सुक्तमेव च । त्रयी भागवतं चौव द्वादशाक्षर एव च ।। अर्थात गाय में ,वेद में ,ॐकार में ,द्वादशाक्षर मन्त्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) में ,सूर्य में ,गायत्री में ,वेदत्रयी में ,अंतर नहीं है ये सब साक्षात् भगवत्स्वरूप ही है भागवत का श्रवण करना ,भगवान् का चिंतन करना , तुलसी की पूजा करना ,जल सींचना और गाय की सेवा करना , कहते है कि इनमे कोई अंतर नहीं है

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" जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !"

"एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है,

तू तो प्रभु का दिया है फिर किस बात से डरता है..."

हे मानव तू उठ और सागर (प्रभु ) में विलीन होने के लिए पुरुषार्थ कर

*आत्मा भी अंदर है* *परमात्मा भी अंदर है*

*आत्मा के परमात्मा**से मिलने का रास्ता*

*भी अंदर ही है ..*

_*"खुद"को "खुद" के अंदर ही बोध करो...*_

_*अपने कर्माें पर भी कभी तो शोध करो...*_

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शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे " विभूतिया " (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम " दुर्गति " ( बुराइया / पाप ) इत्यादि !

परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो !

प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो !

शाकाहार अपनाओ , करुणा को चुनो !

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