तांत्रिक प्रक्रियाओं में जब कोई मरता है या फिर डॉक्टर जिसे मृत घोषित कर देता है वह मुर्दा शरीर जलते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वह व्यक्ति जिसे मृत घोषित कर दिया जाता है वह पूरी तरह से मरा हुआ नहीं होता है। जी हाँ, ये बात सुनने में आपको ज़रूर थोड़ी सी अटपटी लग रही होगी लेकिन ये सौ फीसदी सच है। भारत का सम्पूर्ण तंत्र विज्ञान और तांत्रिक क्रियाएँ इसी बात पर निर्भर है। यही कारण है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी उसकी आत्मा की शान्ति के लिए कई सारे जोग (योग) और जतन (यत्न या प्रयास) किये जाते हैं।
आपको बता दें कि तांत्रिक क्रियाओं में मुर्दे चलते हैं।
इस बात के भारत में बहुत ही स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। हमने पहले ये बात भी सुनी होगी कि जब कोई पक्षी मर जाये और उसे मरे हुए अभी केवल तीन घण्टे ही हुए हों तो कुछ तांत्रिक योगी उसे पुनः जीवित कर देते थे और पक्षी पुनः उड़ने लग जाता था। कोई भी योगी जो ऐसी प्रक्रियाएँ करते हैं उनके पास एक तेल की दिया होता है। उस दिये के सहारे वह जतन करते हैं। ऐसा ही इंसानों के साथ ही होता है।
जी हाँ, मालूम हो कि जब डॉक्टर किसी को मृत घोषित करता है तो वह पूरी तरह से मरा हुआ नहीं होता है। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद 11-14 या 15 दिनों तक उस मृत शरीर के नाख़ून और बालों का बढ़ना इस बात का प्रमाण है कि उसमें जीवन कहीं बाक़ी है। इसका मतलब है कि उसमें जीवन अभी बाक़ी है और इस मृत शरीर को फिर से चलाया जा सकता है।
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