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Sunday, 14 March 2021

तो फिर मोक्ष कब ?🥰

 


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       *🥰 तो फिर मोक्ष कब ?🥰*


*मानव मात्र मोक्ष का अधिकारी है , और मानव शरीर मोक्ष प्राप्त करने के लिए ही मिला है । मानव शरीर धारण करके मोक्ष प्राप्त नहीं करेंगे तो फिर चौरासी लाख़  योनियों में फिर से भटकने की दशा आएगी।*


*मनुष्य मात्र देह के बंधनों से छूटकर परम ब्रह्म में लीन होने की इच्छा करें तो वह समर्थ है और स्वतंत्र भी है । क्योंकि वह परात्पर ब्रह्म का ही अंश है। और उसमें ही लीन होने के लिए , मोक्ष प्राप्त करने के लिए , उसका आखिरी सर्जन हुआ है।*


*किंतु जब तक वह इस जन्म के संपूर्ण प्रारब्ध भोग  नहीं लेगा और पिछले अनादिकाल के अनेक जन्म जन्मांतर के जमा हुए असंख्य हिमालय भर जाए , उतने संचित कर्म के ढेर,  इस जीवनकाल दरमियान साफ नहीं करेगा, भस्म  नहीं करेगा,  तब तक उसको बार-बार अनंत काल तक अनेक जन्म , अनेक देह, धारण करना ही पड़ेगा , और तब तक उसको मोक्ष मिल ही नहीं सकता।*


*उसको मोक्ष प्राप्त करने की तीव्र इच्छा हो जाए , उसको प्राप्त करना हो तो उसे तमाम संचित कर्मों का ध्वंस करना पड़ेगा । तमाम संचित कर्मों को ज्ञानाग्नि  से भस्म करना पड़ेगा और वर्तमान जीवन के प्रारब्ध कर्मों को पूरी तरह से भोग  लेना पड़ेगा।* 


*इस जीवनकाल दरमियान अभी से ही उसको नए क्रियमाण कर्म इस तरह से करने पड़ेंगे,  कि करते ही तुरंत फल देकर शांत हो जाए। उसमें से एक भी क्रियमाण  कर्म संचित कर्म में जमा होने नहीं पावे।*


 *किंतु कठिनाई यह है कि,  जीव उसके जीवन काल दरमियान भोगने के पात्र हुए प्रारब्ध कर्मों को भोंगते भोंगते नए असंख्य क्रियमाण  कर्म करता है जो भोगने के लिए दूसरे असंख्य जन्म धारण करने पड़ते हैं।* 


*इस विष -चक्र का अंत आता ही नहीं ,, इसलिए पहले तो,  इस जीवनकाल दरमियान और उसके पश्चात जो जो क्रियमाण  कर्म हम करें,, वह ऐसे कुशलतापूर्वक करें जिससे वह कर्म कदापि संचित में जमा न होने पावे। और वह भविष्य में नए देह के बंधन में डाले नहीं ,,, बस ऐसी कुशलतापूर्वक काम करते रहने का ही नाम योग है।*


*इसलिए गीता में भगवान ने योग की व्याख्या की है कि---*


 *योग: कर्मसु कौशलम्*

  *🙏🙏🏿🙏🏾जय जय श्री राधे*🙏🏽🙏🏻🙏🏼

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