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Friday, 5 February 2021

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत

 


यह श्लोक हिन्दू ग्रंथ गीता का प्रमुख श्लोकों में से एक है। यह श्लोक गीता के अध्याय 4 का श्लोक 7 और 8 है। यह श्लोक का वर्णन महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने किया था जब अर्जुन ने कुरूक्षेत्र में युद्ध करने से मना कर दिया था।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥

शब्दार्थ-
मै प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढता है तब तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।

शब्दार्थ-—
श्लोक 7 :
यदा= जब
यदा= जब
हि = वास्तव में
धर्मस्य = धर्म की
ग्लानि: = हानि
भवति = होती है
भारत = हे भारत
अभ्युत्थानम् = वृद्धि
अधर्मस्य = अधर्म की
तदा = तब तब
आत्मानं = अपने रूप को रचता हूं
सृजामि = लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ
अहम् = मैं

श्लोक 8

परित्राणाय= साधु पुरुषों का
साधूनां = उद्धार करने के लिए
विनाशाय = विनाश करने के लिए
च = और
दुष्कृताम् = पापकर्म करने वालों का
धर्मसंस्थापन अर्थाय = धर्मकी अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए
सम्भवामि = प्रकट हुआ करता हूं
युगे युगे = युग-युग में

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