*।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।*
*🚩श्री ब्रह्मचैतन्य महाराज गोंदवलेकर🚩*
*🌸 प्रवचन :: ०२ दिसम्बर 🌸*
*अखंड नामस्मरण में रहना ही उपासना है ।*
भगवान की प्राप्ति में कौन-सी बाधा आती है ? हमें भगवान की प्राप्ति नहीं होती इसके लिए वस्तुतः हम ही कारण होते हैं । हम लोगों को इसके लिए दोष देते हैं किन्तु थोड़ा विचार करने पर हमारी समझ में आएगा कि भगवान की प्राप्ति में अन्य लोग बाधा नहीं बल्कि हम ही बाधा होते हैं । हमें जिसे अपना कहना चाहिए उसे हम अपना न समझकर और किसी को ही अपना समझते हैं ।
हमारा बेटा, हमारी पत्नी, हमारा भाई इन सब को हम अपना समझते हैं, कुछ सीमा तक ये हमारे होते हैं यह सही है । किन्तु भगवान को यदि हमने अपना कहा तो वह हमेशा अपना ही होता है और वह हमारी सहायता के लिए सदा तैयार ही होता है । तुम सब द्रौपदी की कहानी जानते हो न ? मेरे पति मेरी रक्षा कर पाएँगे ऐसा उसे लगता था । किन्तु किसी से भी कुछ होने वाला नहीं है, यह जब उसकी समझ में आया तब उसने श्रीकृष्ण की आर्त भाव से प्रार्थना की और तब वह उसके लिए तत्काल आए । मतलब यह हुआ कि जिन्हें हम अपना समझते हैं वे वास्तव में अपने नहीं होते । अतः हम परमात्मा को अपना समझें, 'मैं उसका हूँ' ऐसी भावना निरंतर बनाए रखें, और जो-जो घटता है वह सब उसी की इच्छा से होता है, यह भाव दृढ़ हो । ऐसी भावना दृढ़ होने के लिए उसकी उपासना करनी चाहिए । उपासना का मतलब क्या है ? हम भगवान के हैं और हम सदा उसी के समीप हैं ऐसा लगना । ऐसा लगने के लिए हमें उसके नामस्मरण में रहना चाहिए । हम उसका सदा नामस्मरण करते हैं तो वह हमारे पास निरंतर रहता है । जब तुम किसी का नाम कहते हो, तब उसकी मूर्ति तुम्हारे ध्यान में आती है, उसकी मूर्ति वह सामने न होते हुए भी तुम्हें ध्यान में दिखाई देती है, उसी प्रकार भगवान का नामस्मरण करने पर वह तुम्हारे पास ही होता है । यदि पूछा जाए कि भगवान कैसा है, तो क्या तुम कह पाओगे ? भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि वह नाम में हैं । नाम ही उसका रूप है । अतः नामस्मरण करने पर भगवान को तुम्हारे पास आना ही पड़ता है । नाम स्मरण कैसे किया जाए ? समर्थ रामदास स्वामी ने कहा है, 'यदि आदमी कुछ भी नहीं करे, और वाणी से केवल रामनाम जपता रहे, तो भी चक्रपाणी यानी भगवान को संतोष होगा और वह भक्त को सँभालेगा ।' हम रामनाम जपते समय क्या कुछ भी नहीं करते ? हम उस वक्त गृहस्थी की चिंता करते ही हैं न ? मतलब कि उस वक्त हम अपना अहंकार अलग रखकर नामस्मरण करते रहते हैं न ? अहंकार के बिना जो नामस्मरण करता है, उसी को भगवान सँभालते हैं । और इस भावना से जो स्वस्थ चित्त रहता है, भगवान उसका जीवन-निर्वाह करता है ।
*३३७ . हम किसी के होकर रहें - या तो गुरु के या भगवान के ।*
*।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।*
No comments:
Post a Comment