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*🔹सूर्य कवच.🔹*
*शास्त्रों में वर्णित सूर्य कवच के पाठ से हर आपदा से बचा जा सकता है। यह कवच व्यक्ति के अंग-प्रत्यंग की रक्षा करता है। यह कवच संपूर्ण रूप से सौभाग्य और दिव्यता प्रदान करता है। यश और पराक्रम देता है।*
*🔹सूर्यकवचम.🔹*
*याज्ञवल्क्य उवाच,*
*श्रणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम्।*
*शरीरारोग्दं दिव्यं सव सौभाग्य दायकम् ।१।*
*(याज्ञवल्क्यजी बोले- हे मुनि श्रेष्ठ! सूर्य के शुभ कवच को सुनो, जो शरीर को आरोग्य देने वाला है तथा संपूर्ण दिव्य सौभाग्य को देने वाला है।)*
*देदीप्यमान मुकुटं स्फुरन्मकर कुण्डलम।*
*ध्यात्वा सहस्त्रं किरणं स्तोत्र मेततु दीरयेत् ।।२।।*
*(चमकते हुए मुकुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार किरण (सूर्य) को ध्यान करके यह स्तोत्र प्रारंभ करें।)*
*शिरों में भास्कर: पातु ललाट मेडमित दुति:।*
*नेत्रे दिनमणि: पातु श्रवणे वासरेश्वर: ।।३।।*
*(मेरे सिर की रक्षा भास्कर करें, अपरिमित कांति वाले ललाट की रक्षा करें। नेत्र (आंखों) की रक्षा दिनमणि करें तथा कान की रक्षा दिन के ईश्वर करें।)*
*ध्राणं धर्मं धृणि: पातु वदनं वेद वाहन:।*
*जिव्हां में मानद: पातु कण्ठं में सुर वन्दित: ।।४।।*
*(मेरी नाक की रक्षा धर्मघृणि, मुख की रक्षा देववंदित, जिव्हा की रक्षा मानद् तथा कंठ की रक्षा देव वंदित करें।)*
*सूर्य रक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्ज पत्रके।*
*दधाति य: करे तस्य वशगा: सर्व सिद्धय: ।।५।।*
*(सूर्य रक्षात्मक इस स्तोत्र को भोजपत्र में लिखकर जो हाथ में धारण करता है तो संपूर्ण सिद्धियां उसके वश में होती हैं।)*
*सुस्नातो यो जपेत् सम्यग्योधिते स्वस्थ: मानस:।*
*सरोग मुक्तो दीर्घायु सुखं पुष्टिं च विदंति ।।६।।*
*(स्नान करके जो कोई स्वच्छ चित्त से कवच पाठ करता है वह रोग से मुक्त हो जाता है, दीर्घायु होता है, सुख तथा यश प्राप्त होता है।)*
*🔸संकलन: सदानंद पाटील, रत्नागिरी.*
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