वह सूर्याग्नि का प्रतीक भी माना गया है। वैदिक, जैन, बौद्ध धर्म ग्रन्थों में आदि में गन्धर्व और यक्षों की उपस्थिति बताई गई है। गन्धर्वों का अपना लोक है।
पौराणिक साहित्य में गन्धर्वों का एक देवोपम जाति के रूप में उल्लेख हुआ है। नामकरण जब गन्धर्व-संज्ञा जातिपरक हो गई, तब गन्धर्वों का अंतरिक्ष में निवास माना जाने लगा और वे देवताओं के लिए सोम रस प्रस्तुत करने लगे।
नारियों के प्रति उनका विशेष अनुराग था और उनके ऊपर वे जादू-सा प्रभाव डाल सकते थे। अथर्ववेद में ही उनकी संख्या 6333 बतायी गई है।
सोम रस के अतिरिक्त उनका सम्बन्ध औषधियों से भी था। वे देवताओं के गायक भी थे, इस रूप में इन्द्र के वे अनुचर माने जाते थे।
विष्णु पुराण के अनुसार वे ब्रह्मा के पुत्र थे और चूँकि वे माँ वाग्देवी का पाठ करते हुए जन्मे थे, उनका नाम गन्धर्व पड़ा।
पौराणिक उल्लेख विष्णु पुराण का ही उल्लेख है कि, वे कश्यप और उनकी पत्नी अरिष्टा से जन्मे थे। हरिवंशपुराण उन्हें ब्रह्मा की नाक से उत्पन्न होने का उल्लेख करता है।
गन्धर्वों का प्रधान चित्ररथ था और उनकी पत्नियाँ अप्सराएं थीं। विष्णुपुराण में कथा आयी है कि किस प्रकार गन्धर्वों ने पाताल के नागों से युद्ध कर उनका अनन्त धन और नगर छीन लिया था। नागों की प्रार्थना पर विष्णु ने पुरुकुत्स के रूप में जन्म लेकर उनकी रक्षा करने का वचन दिया।
इस पर नागों ने अपनी भगिनी नर्मदा के साथ पाताल लोक जाकर गन्धर्वों का पराभव किया। गंधर्व शब्द का प्रयोग पौराणिक विभिन्न संदर्भों में भी हुआ है, जैसे यक्ष, राक्षस, पिशाच, सिद्ध, चारण, नाग, किंन्नर आदि।
अंतराभसत्व में स्थित देवयोनियों में गंधर्वो की भी गणना है।गंधर्व शब्द की क्लिष्ट कल्पनाओं पर आश्रित अनेक व्युत्पत्तियाँ प्राचीन और अर्वाचीन विद्वानों ने दी हैं।
सायण ने दो स्थानों पर दो प्रकार की व्याख्याएँ की हैं- प्रथम 'गानुदकं धारयतीति गंधवोमेघ' और द्वितीय 'गवां रश्मीनां धर्तारं सूर्य।'
फ्रेंच विद्वान् प्रिजुलुस्की की 'इंडियन कल्चर' पुस्तक में गंधर्वों का संबंध गर्दभों से जोड़ा है, क्योंकि 'गंधर्व गर्दभनादिन्' हैं एवं गंर्दभों के समान ही गंधर्वो की कामुकता का वर्णन है।
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