वाक् सिद्धि
वाक् सिद्धि प्राप्त होने के बाद उस सिद्ध पुरुष द्वारा बोले गये सभी शब्द अर्थपूर्ण, व्यावहारिक और अलौकिक शक्तियों से भरे होते हैं। शब्द इतने प्रभावी होते हैं कि किसी को श्राप या वरदान देने पर वे शब्द अपना असर जरूर दिखाते हैं। वे वचन व्यर्थ के नहीं होते और उनका एक अलग ही प्रभाव
यह एक साधना है जो न कील मन्त्र से अपितु शरीर को यंत्र मान कर उससे सिद्ध करने से जुडी है। शरीर की सिद्धि, उसको जड़ी बूटी से सुवासित वरना, कुछ कठिन योगासन, और साथ में अल्पाहार और नियमित मन्त्र जाप। इसके साथ साथ ध्यान विधि। यह सब एक गुरु के संरक्षण में करीब 3–5 वर्ष करने के उपरान्त वाक् सिद्धि की प्राप्ति होती है।
वाक् सिद्धि का उल्लेख भारतीय ग्रंथो में मिलता है. विशेष तौर पर पतंजलि योग सूत्र में. भारतीय दर्शन में छ: स्कूल है दर्शन शाश्त्र के, योग भी एक School of Philosophy है जिसे ऋषि पतंजलि ने गठित किया था.
वाक्क सिद्धि का मतलब होता है आप जो कहे वो हो जाये. भारतीय ग्रंथो में यह बात आती है फलां ऋषि में शाप दे दिया या फलां ऋषि ने वरदान दे दिया. यानि वो साधक, वो ऋषि साधना के उस उच्तम शिखर पर पहुच चुके थे कि जो वो कहते थे वो सच हो जाता था. इसी सिद्धि को वाक् सिद्धि कहते है.
पतंजलि योग सूत्र – साधनपाद में सूत्र संख्या 36
सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलां श्रयत्वम.....
इसका आशय है कि – ‘सत्य’ की दृढ स्थिति हो जाने पर उस योगी में क्रिया फल के आश्रय का भाव आ जाता है वह जो कहता है वह हो जाता है.
इस का मतलब यह है कि योगी का जब सत्य में भाव दृढ हो जाता है तो उसमे क्रिया फल के आश्रय का भाव आ जाता है. क्यूंकि सत्य बोलने तथा उसके पालन में बड़ी शक्ति निहित है इसलिए अध्यात्म में सत्य पर काफी जोर दिया है. सामान्य व्यक्ति अपने कर्मो का फल अवश्य भोगता है किन्तु सत्यनिष्ठ योगी यदि उसे कोई वरदान, शाप या आशीर्वाद दे देता है तो वह इस सब कर्म फलों का उल्लघन करके सत्य हो जाता है. उसका वचन कभी भी निष्फल नहीं जाता.
बात शुरू होती है पतंजलि योग सूत्र के अष्टांगयोग के पहले सूत्र यम से. क्यूंकि कुल आठ अंग है पतंजलि योग सूत्र के – यम, नियम, आसन, प्राणयाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधी.
यम क्यां है – यम पांच गुण है जो साधना में आगे बढ़ने वाले साधक के अंदर होने चाहिए या साधना करते करते उत्पन्न हो जाते है. यह है अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्यं, अपरिग्रह.
यहाँ सत्य को जो पतंजलि ने कहा है उसकी बात करते है – पतंजलि कहते है – इन्द्रिय और मन से जैसा देखा, सुना या अनुभव किया गया है उसे वैसे ही कहना सत्य कहलाता है. ऐसा सत्य प्रिय तथा हितकर भी होना चाहिए. सत्य यदि अप्रिय तथा अहितकर हो तो कदापि नहीं बोलना चाहिए. क्यूंकि सत्य को भाषा से नहीं समझा जा सकता. सत्य भाषा या शब्दों से उपर की बात है.
तो केवल एक ही गुण को ग्रहण करके आप वाक् सिद्धि प्राप्त कर सकते है. लेकिन यह सत्य का मतलब सत्य है केवल सत्य और कुछ भी नहीं.
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