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*🔸साबर मंत्र.🔸*
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*द्वापरयुग में भगवान् श्री कृष्ण की आज्ञा से अर्जुनने पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति के लिए भगवान् शिव का तप किया । एक दिन भगवान् शिव एक शिकारी का भेष बनाकर आये और जब पूजा के बाद अर्जुन ने सुअर पर बाण चलाया तो ठीक उसी वक़्त भगवान् शिव ने भी उस सुअर को तीर मारा । दोनों में वाद विवाद हो गया और शिकारी रुपी शिव ने अर्जुन से कहा, मुझसे युद्ध करो, जो युद्ध में जीत जायेगा सुअर उसी को दीया जायेगा । अर्जुन और भगवान् शिव में युद्ध शुरू हुआ । युद्ध देखने के लिए माँ पार्वती भी शिकारीका भेष बना वहां आ गयी और युद्ध देखने लगी ।*
*तभी भगवान् कृष्ण ने अर्जुन से कहा, जिसका रोज तप करते हो, वही शिकारी के भेष में साक्षात् खड़े है । अर्जुनने भगवान् शिव के चरणों में गिरकर प्रार्थना की, और भगवान् शिव ने अर्जुन को अपना असली स्वरुप दिखाया ।*
*अर्जुन भगवान् शिव के चरणोंमें गिर पड़े, और पाशुपत अस्त्र के लिए प्रार्थना की शिव ने अर्जुन को इच्छित वर दीया । उसी समय माँ पार्वतीने भी अपना असली स्वरुप दिखाया जब शिव और अर्जुन में युद्ध हो रहा था, तो माँ भगवती शिकारी का भेष बनाकर बैठी थी और उस समय अन्य शिकारी जो वहाँ युद्ध देख रहे थे । उन्होंने जो मॉस का भोजन किया, वही भोजन माँ भगवती को शिकारी समझ कर खाने को दिया । माता ने वही भोजन ग्रहण किया इसलिए जब माँ भगवती अपने असली रूप में आई तो उन्होंने ने भी शिकारीओं से प्रसन्न होकर कहा ” हे किरातों मैं प्रसन्न हूँ , वर मांगो ” इसपर शिकारीओं ने कहा ” हे माँ हम भाषा व्याकरण नहीं जानते, और ना ही हमे संस्कृत का ज्ञान है । और ना ही हम लम्बे चौड़े विधि विधान कर सकते है। पर हमारे मन में भी आपकी और महादेव की भक्ति करने की इच्छा है, इसलिए यदि आप प्रसन्न है, तो भगवान शिव से हमे ऐसे मंत्र दिलवा दीजिये, जिससे हम सरलता से आप का पूजन कर सके ।*
*माँ भगवती की प्रसन्नता देख और भीलों का भक्ति भाव देख कर आदिनाथ भगवान् शिवने साबर मन्त्रों की रचना की । यहाँ एक बात बताना बहुत आवश्यक है कि, नाथ पंथ में भगवान् शिव को ”आदिनाथ” कहा जाता है, और माता पार्वती को ”उदयनाथ” कहा जाता है । भगवान् शिवजी ने यह विद्या भीलों को प्रदान की, और बाद में यही विद्या दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ को मिली । उन्होंने इस विद्याका बहुत प्रचार प्रसार किया, और करोड़ो साबर मन्त्रों की रचना की । उनके बाद गुरु गोरखनाथजी ने इस परम्पराको आगे बढ़ाया, और नवनाथ एवं चौरासी सिद्धों के माध्यमसे इस विद्याका बहुत प्रचार हुआ । कहा जाता है कि, योगी कानिफनाथजी ने पांच करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की, और वही चर्पटनाथजी ने सोलह करोड़ मन्त्रों की रचना की । मान्यता है कि, योगी जालंधरनाथजी ने तीस करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की । इन योगीयो के बाद अनन्त कोटि नाथ सिद्धोंने साबर मन्त्रों की रचना की । यह साबर विद्या नाथ पंथमें गुरु शिष्य परम्परा से आगे बढ़ने लगी।*
*आंतरजाल.*
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*🔸साबर मंत्र.🔸*
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*द्वापरयुग में भगवान् श्री कृष्ण की आज्ञा से अर्जुनने पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति के लिए भगवान् शिव का तप किया । एक दिन भगवान् शिव एक शिकारी का भेष बनाकर आये और जब पूजा के बाद अर्जुन ने सुअर पर बाण चलाया तो ठीक उसी वक़्त भगवान् शिव ने भी उस सुअर को तीर मारा । दोनों में वाद विवाद हो गया और शिकारी रुपी शिव ने अर्जुन से कहा, मुझसे युद्ध करो, जो युद्ध में जीत जायेगा सुअर उसी को दीया जायेगा । अर्जुन और भगवान् शिव में युद्ध शुरू हुआ । युद्ध देखने के लिए माँ पार्वती भी शिकारीका भेष बना वहां आ गयी और युद्ध देखने लगी ।*
*तभी भगवान् कृष्ण ने अर्जुन से कहा, जिसका रोज तप करते हो, वही शिकारी के भेष में साक्षात् खड़े है । अर्जुनने भगवान् शिव के चरणों में गिरकर प्रार्थना की, और भगवान् शिव ने अर्जुन को अपना असली स्वरुप दिखाया ।*
*अर्जुन भगवान् शिव के चरणोंमें गिर पड़े, और पाशुपत अस्त्र के लिए प्रार्थना की शिव ने अर्जुन को इच्छित वर दीया । उसी समय माँ पार्वतीने भी अपना असली स्वरुप दिखाया जब शिव और अर्जुन में युद्ध हो रहा था, तो माँ भगवती शिकारी का भेष बनाकर बैठी थी और उस समय अन्य शिकारी जो वहाँ युद्ध देख रहे थे । उन्होंने जो मॉस का भोजन किया, वही भोजन माँ भगवती को शिकारी समझ कर खाने को दिया । माता ने वही भोजन ग्रहण किया इसलिए जब माँ भगवती अपने असली रूप में आई तो उन्होंने ने भी शिकारीओं से प्रसन्न होकर कहा ” हे किरातों मैं प्रसन्न हूँ , वर मांगो ” इसपर शिकारीओं ने कहा ” हे माँ हम भाषा व्याकरण नहीं जानते, और ना ही हमे संस्कृत का ज्ञान है । और ना ही हम लम्बे चौड़े विधि विधान कर सकते है। पर हमारे मन में भी आपकी और महादेव की भक्ति करने की इच्छा है, इसलिए यदि आप प्रसन्न है, तो भगवान शिव से हमे ऐसे मंत्र दिलवा दीजिये, जिससे हम सरलता से आप का पूजन कर सके ।*
*माँ भगवती की प्रसन्नता देख और भीलों का भक्ति भाव देख कर आदिनाथ भगवान् शिवने साबर मन्त्रों की रचना की । यहाँ एक बात बताना बहुत आवश्यक है कि, नाथ पंथ में भगवान् शिव को ”आदिनाथ” कहा जाता है, और माता पार्वती को ”उदयनाथ” कहा जाता है । भगवान् शिवजी ने यह विद्या भीलों को प्रदान की, और बाद में यही विद्या दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ को मिली । उन्होंने इस विद्याका बहुत प्रचार प्रसार किया, और करोड़ो साबर मन्त्रों की रचना की । उनके बाद गुरु गोरखनाथजी ने इस परम्पराको आगे बढ़ाया, और नवनाथ एवं चौरासी सिद्धों के माध्यमसे इस विद्याका बहुत प्रचार हुआ । कहा जाता है कि, योगी कानिफनाथजी ने पांच करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की, और वही चर्पटनाथजी ने सोलह करोड़ मन्त्रों की रचना की । मान्यता है कि, योगी जालंधरनाथजी ने तीस करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की । इन योगीयो के बाद अनन्त कोटि नाथ सिद्धोंने साबर मन्त्रों की रचना की । यह साबर विद्या नाथ पंथमें गुरु शिष्य परम्परा से आगे बढ़ने लगी।*
*आंतरजाल.*
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