* ॥... ॐ नमः शिवाय ॥*
आज का दिन आप सभी के लिए शुभ हो।
🍀द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं स्तोत्र🍀
शिव पुराण के कोटिरुद्र सहिंता मे वर्णित कथानक के अनुसार भगवान शिवशंकर प्राणियों के कल्याण हेतु कई तीर्थों मे भ्रमण करते रहते हैं तथा लिंग के रूप मे वहाँ निवास भी करते हैं।
कुछ विशेष स्थानों पर शिव के उपासकों ने पूर्ण निष्ठा के साथ तन्मय होकर शिव की आराधना की थी।
उनके भक्तिभाव के प्रेम से आकर्षित भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया तथा उनके मन की अभिलाषा को भी पूर्ण किया था।
उन स्थानों मे आविर्भूत (प्रकट) दयालु शिव अपने भक्तों के अनुरोध पर अपने अंशों से सदा के लिए वहीं अवस्थित हो गये।
लिंग के रूप में साक्षात भगवान शिव जिन-जिन स्थानों मे विराजमान हुए, वे सभी तीर्थ के रूप मे महत्व को प्राप्त हुए।
हिन्दू धर्म मे पुराणों के अनुसार शिवजी जहां जहां स्वयं प्रगट हुए उन 12 स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप मे पूजा जाता है।
हिंदुओं मे मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन ' प्रात:काल और संध्या ' के समय इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उसके 7 जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।
🍁सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम् !१!
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने !२!
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये !३!
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति !४!
एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति।
कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वरा !५! "
इस "लघु स्तोत्र" का जप जो भी व्यक्ति प्रतिदिन करता है उसे बारह ज्योतिर्लिंगो जैसे दर्शन करने के समान फल की प्राप्ति होती है।
केवल यही एक स्तोत्र है जिसका जप करने से व्यक्ति को शिव भगवान की कृपा तो प्राप्त होती ही है साथ ही अन्य सभी देवी देवताओ की कृपा भी प्राप्त होती है।
☸ "पूर्ण द्वादश ज्योर्लिंग स्तोत्र" का अर्थ हिन्दी भाषा मे इस प्रकार है -
🍁सौराष्ट्रदेशे विशदेsतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये !
अर्थात जो शिव अपनी भक्ति प्रदन करने के लिए सौराष्ट्र प्रदेश मे दयापूर्वक अवतरित हुए हैं,
चंद्रमा जिनके मस्तक का आभूषण बना है,
उन ज्योतिर्लिंग स्वरुप भगवान श्री सोमनाथ की शरण मे मैं जाता हूँ।
🍁श्रीशैलश्रृंगे विबुधातिसंगेतुलाद्रितुंगेsपि मुदा वसन्तम।
तमर्जुनं मल्लिकापूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम !
अर्थात जो ऊँचाई के आदर्शभूत पर्वतों से भी बढ़कर ऊँचे श्री शैल के शिखर पर, जहाँ देवताओं का अत्यन्त समागम रहता है, प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं,
तथा जो संसार सागर से पार कराने के लिए पुल के समान है, उन एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुन को मैं नमस्कार करता हूँ।
🍁अवन्तिकायां विहितावतारंमुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम !
अर्थात संतजनो को मोक्ष देने के लिए जिन्होंने अवन्तिपुरी (वर्तमान मे उज्जैन) मे अवतार धारण किया है,
उन महाकाल नाम से विख्यात महादेवजी को मैं अकाल मृत्यु से बचाने के लिए प्रणाम करता हूँ।
🍁कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे !
अर्थात जो सत्पुरुषो को संसार सागर से पार उतारने के लिए कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम के निकट मान्धाता के पुर मे सदा निवास करते हैं,
उन अद्वित्तीय कल्याणमय भगवान ऊँकारेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ।
🍁पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि !
अर्थात जो पूर्वोत्तर दिशा मे चिताभूमि (वर्तमान मे वैद्यनाथ धाम) के भीतर सदा ही गिरिजा के साथ वास करते हैं,
देवता और असुर जिनके चरण कमलों की आराधना करते हैं, उन श्री वैद्यनाथ को मैं प्रणाम करता हूँ।
🍁याम्ये सदंगे नगरेsतिरम्ये विभूषितांग विविधैश्च भोगै:।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये !
अर्थात जो दक्षिण के अत्यन्त रमणीय सदंग नगर मे विविध भोगो से संपन्न होकर आभूषणों से भूषित हो रहे हैं,
जो एकमात्र सदभक्ति और मुक्ति को देने वाले हैं,
उन प्रभु श्रीनागनाथ जी की शरण मे मैं जाता हूँ।
🍁महाद्रिपार्श्चे च तट रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रै:।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे !
अर्थात जो महागिरि हिमालय के पास केदारश्रृंग के तट पर सदा निवास करते हुए मुनीश्वरो द्वारा पूजित होते हैं तथा
देवता, असुर, यज्ञ और महान सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं,
उन एक कल्याणकारक भगवान केदारनाथ का मैं स्तवन करता हूँ।
🍁सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरीतीरपवित्रदेशे।
यद्दर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे !
अर्थात जो गोदावरी तट के पवित्र देश मे सह्य पर्वत के विमल शिखर पर वास करते हैं, जिनके दर्शन से तुरन्त ही पातक नष्ट हो जाता है,
उन श्री त्र्यम्बकेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ।
🍁सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यै:।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि !
अर्थात जो भगवान श्री रामचन्द्र जी के द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम मे अनेक बाणों द्वारा पुल बाँधकर स्थापित किये गए, उन श्री रामेश्वर को मैं नियम से प्रणाम करता हूँ।
🍁यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि !
अर्थात जो डाकिनी और शाकिनी वृन्द मे प्रेतों द्वारा सदैव सेवित होते हैं,
उन भक्ति हितकारी भगवान भीम शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ।
🍁 सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम ।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये !
अर्थात जो स्वयं आनंद कन्द हैं और आनंदपूर्वक आनन्द वन (वर्तमान मे काशी) मे वास करते हैं,
जो पाप समूह के नाश करने वाले हैं,
उन अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की शरण मे मैं जाता हूँ।
🍁 इलापुरे रम्यविशालकेsस्मिन समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम।
वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णे श्वराख्यं शरणं प्रपद्ये !
अर्थात जो इलापुर के सुरम्य मंदिर मे विराजमान होकर समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं,
जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है,
उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान शिव की शरण मे मैं जाता हूँ।
🍁 ज्योतिर्मयद्वादशलिंगानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोsतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च !
अर्थात यदि मनुष्य क्रमश: कहे गये इन द्वादश ज्योतिर्मय शिव लिंगो के स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करें तो इनके दर्शन से होने वाला फल प्राप्त कर सकता है।
*॥ ॐ नमःशिवाय ...जय योगेश्वर महादेव ॥*
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