बात उस समय की है जब मेरे मन में प्रकृति की खोज और ईश्वर जिज्ञासा ज्यादा थी, बात सन् 2011 की है मेरी उम्र लगभग 19 वर्ष थी, मैं काशी प्रवास पर था. मैं ये तो जानता था कि मेरी आध्यात्मिक यात्रा इसी शहर से आरंभ हुई है और आगे भी जारी रहेगी. शिव के इस शहर जिसे दुनिया का सबसे पुरानी नगरी कहा गया है जो दुनिया का आध्यात्मिक केंद्र भी माना जाता है, यहां का आध्यात्मिक चुंबकीय आकर्षण मुझे हमेशा आकर्षित करता रहा है. एक और चीज़ है जो बनारस ने दुनिया को दी है, अघोरी.
दुनिया मे शिव का प्रतिबिंब माने जाने वाले अघोरी सम्प्रदाय का गढ़ काशी ही है, मेरी जिज्ञासा एक दिन मुझे ऐसी जगह ले गयी जहा शायद सामान्य मनुष्य नहीं जाना चाहेगा, सुबह के समय मैं पैदल निकल गया काशी के जंगल में सिर्फ़ ये देखने की ये लोग आते कहा से है, शायद उस दिन चंद्र ग्रहण था.
मंत्र सिद्धि के लिए अनुकूल दिन मेने काली गुफा का पता लगा लिया था जंगल मे एक शक्ति पीठ जहा बाकी के दिनो मे सामान्य मनुष्य पूजा करता था मगर अन्य विशेष दिन जैसे कोई मन्त्र सिद्धि अवसर कोई मुहुर्त या त्योहार के दिन कोई वहां फटकने की हिम्मत नहीं करता था वो दिन होता था अघोरी पूजा का, काली गुफा मैं एक पत्थर की हज़ारों साल पुरानी काली माता की मूर्ति है, जो कथा के अनुसार स्वयं शिव जी ने स्थापित की थी अघोरा अवतार मैं, मेरा मन अंदर ही अंदर सहम रहा था मगर जिज्ञासा पूरी तरह से हावी थी, शाम होने को चली थी ठंड का समय शाम भी रात जैसे होने वाली थी,
मेरा मन पूरी तरह सहम गया था भूख सी लगी थी मेरी जेब मे काशी विश्वनाथ का प्रसाद रखा हुआ था खाने का मन होते हुए भी हाथ जेब तक नहीं जा रहा था, तभी कुछ आवाज़ें आने लगी मे समझ गया काली गुफा आ गयी, मन कर रहा था वापस भाग जाओ मगर पैर पीछे की ओर से हिलने के लिए भी तैयार नहीं थे, काली गुफा एक छोटी सी कंदरा की तरह थी मैंने अंदर झांक कर देखा तो पाया कि 12 अघोरी पूरी तरफ़ से राख मे लिपटे कुछ मस्ती मैं मुर्दे की राख उड़ा रहे थे कोई अवैदिक मंत्र था, मैंने बहुत देर उनको झाँक कर देखा, उनकी मंत्र जप सिंदूर और राख से काली का शृंगार,
मैंने सोचा अब चुप चाप निकला जाए मगर काली गुफा का एक पहरेदार भी था एक बड़ा सा काला कुत्ता पता नहीं उसने मुझे देखा और शोर करने लगा जिसके कारण उन्हें पता लगा गया कि मैं वहां हू, मैं पीछे मुड़कर तेज़ी से जाने ही लगा था कि उनके मुख्य अघोरी ने आवाज़ लगा दी बच्चे आ गया तो रुक ही जा, मै अंदर से हल्का सा डर गया था मगर पीछे मुड़कर उनकी और चल दिया.. तो यहां कैसे, उन्होने मुझसे पूछा, मैंने जवाब दिया बस ऐसे ही,,
उन्होने कहा नहीं दुनिया मे कुछ भी ऐसे ही नहीं होता हर स्थिति ईश्वर निर्मित होती है, लाओ भोले बाबा का प्रसाद खिलाओ, आश्चर्य जो हाथ भूख के मारे तड़पने के बाद भी जेब तक ना जा रहा था वो तुरंत मेरे जेब के अंदर था मैंने वह पन्नी जिसमे विश्वनाथ का प्रसाद था उनकी और बड़ा दी, बड़े चाव से धीरे धीरे उन्होने वो प्रसाद खाया, उनको बच्चों जेसे थोड़ी सी मिठाई के लिए लड़ता देख में मुस्कुरा दिया तभी मुख्य अघोरी ने कहा बताओ क्या जिज्ञासा थी. मैंने कहा की कुछ खास नहीं बस आपको देखना था और उस काली माता की मूर्ति को,,,
उन्होने कहा जाओ दर्शन कर के आ जाओ मैं कंदरा के अंदर गया अत्यंत भयंकर रूप मे काले पत्थर से बनी काली की मूर्ति देखकर ठिठक गया मगर माता कह कर अपना माथा उनकी चरणों पर टेका मगर मसानी राख मेरे माथे पर लाग चुकी थी इतने मैं अघोरी मुखिया अंदर आ गए एक जिज्ञासा शांत हुई ना, मैंने हां मे सर हिलाया, अब दूसरी जिज्ञासा की बारी है... जानना चाहते हो ना हम कौन है उससे भी अधिक शिव कौन है, वैराग्य क्या है? मेरा सिर्फ सिर हिला उन्होने काली माता के चरणों से एक मुट्ठी भर राख उठा ली ये है सत्य, और वैराग्य कोई कहानी या सच नहीं जो मैं कह कर सुनाऊँ ये एक भाव है कण कण तक महसूस करो हर हर महादेव, साथ के अघोरी भी हर हर महादेव का घोष करने लगे उन्होने वो राख हवा मे उड़ा दी,
वो राख हवा मे उड़ कर मेरे भी शरीर पर आने लगी, और लिपटने लगी, मैंने अपनी आंखे बंद कर ली, एकमात्र भाव उत्पन्न हुआ मेरा अस्तित्व ही क्या है, मेरा मोह मेरा जिंदगी में पैसे कमाने का सपना आगे बढ़ने का सपना सब पूर्ण ना होते हुए भी सब पूर्ण हुआ, जिंदगी के लक्ष्यों का जिंदगी से कटाव हुआ मैंने महसूस किया मेरे शरीर का प्रत्येक अंग का लक्ष्य ईश्वर हो गया,, सब कुछ एक दम शांत एक दम निश्चित अचल परिवर्तन की इच्छा समाप्त,, एक धीमा स्वर दांये कान मैं शायद पूर्ण अनहद ध्वनि. मैं इस अवस्था मैं 3 घंटे स्थिर रहा.
मगर महसूस 5 मिनट हुआ सा लगा 3 बज चुके थे आधे अघोरी जा चुके थे, मैं शांत ही बैठा रहा उन्होने भी कुछ ना कहा, सुबह होने को थी अब मैं भी सामान्य हो चुका था, उन्होनें कहा महादेव भला करे फिर मिलेंगे कभी ना कभी, मैंने भी हाथ जोड़ कर प्रणाम किया वापस आने के लिए निकल पड़ा, मगर अब समझा क्यू महादेव को शमशान प्रिय है, क्यू की वैराग्य की अनुभूति तभी संभव है जब हम हमारे अंत को जान ले, जब तक शरीर है कर्म करे कृष्ण की बात माने, अंत समय वैराग्य शिव की बात...
दुनिया मे शिव का प्रतिबिंब माने जाने वाले अघोरी सम्प्रदाय का गढ़ काशी ही है, मेरी जिज्ञासा एक दिन मुझे ऐसी जगह ले गयी जहा शायद सामान्य मनुष्य नहीं जाना चाहेगा, सुबह के समय मैं पैदल निकल गया काशी के जंगल में सिर्फ़ ये देखने की ये लोग आते कहा से है, शायद उस दिन चंद्र ग्रहण था.
मंत्र सिद्धि के लिए अनुकूल दिन मेने काली गुफा का पता लगा लिया था जंगल मे एक शक्ति पीठ जहा बाकी के दिनो मे सामान्य मनुष्य पूजा करता था मगर अन्य विशेष दिन जैसे कोई मन्त्र सिद्धि अवसर कोई मुहुर्त या त्योहार के दिन कोई वहां फटकने की हिम्मत नहीं करता था वो दिन होता था अघोरी पूजा का, काली गुफा मैं एक पत्थर की हज़ारों साल पुरानी काली माता की मूर्ति है, जो कथा के अनुसार स्वयं शिव जी ने स्थापित की थी अघोरा अवतार मैं, मेरा मन अंदर ही अंदर सहम रहा था मगर जिज्ञासा पूरी तरह से हावी थी, शाम होने को चली थी ठंड का समय शाम भी रात जैसे होने वाली थी,
मेरा मन पूरी तरह सहम गया था भूख सी लगी थी मेरी जेब मे काशी विश्वनाथ का प्रसाद रखा हुआ था खाने का मन होते हुए भी हाथ जेब तक नहीं जा रहा था, तभी कुछ आवाज़ें आने लगी मे समझ गया काली गुफा आ गयी, मन कर रहा था वापस भाग जाओ मगर पैर पीछे की ओर से हिलने के लिए भी तैयार नहीं थे, काली गुफा एक छोटी सी कंदरा की तरह थी मैंने अंदर झांक कर देखा तो पाया कि 12 अघोरी पूरी तरफ़ से राख मे लिपटे कुछ मस्ती मैं मुर्दे की राख उड़ा रहे थे कोई अवैदिक मंत्र था, मैंने बहुत देर उनको झाँक कर देखा, उनकी मंत्र जप सिंदूर और राख से काली का शृंगार,
मैंने सोचा अब चुप चाप निकला जाए मगर काली गुफा का एक पहरेदार भी था एक बड़ा सा काला कुत्ता पता नहीं उसने मुझे देखा और शोर करने लगा जिसके कारण उन्हें पता लगा गया कि मैं वहां हू, मैं पीछे मुड़कर तेज़ी से जाने ही लगा था कि उनके मुख्य अघोरी ने आवाज़ लगा दी बच्चे आ गया तो रुक ही जा, मै अंदर से हल्का सा डर गया था मगर पीछे मुड़कर उनकी और चल दिया.. तो यहां कैसे, उन्होने मुझसे पूछा, मैंने जवाब दिया बस ऐसे ही,,
उन्होने कहा नहीं दुनिया मे कुछ भी ऐसे ही नहीं होता हर स्थिति ईश्वर निर्मित होती है, लाओ भोले बाबा का प्रसाद खिलाओ, आश्चर्य जो हाथ भूख के मारे तड़पने के बाद भी जेब तक ना जा रहा था वो तुरंत मेरे जेब के अंदर था मैंने वह पन्नी जिसमे विश्वनाथ का प्रसाद था उनकी और बड़ा दी, बड़े चाव से धीरे धीरे उन्होने वो प्रसाद खाया, उनको बच्चों जेसे थोड़ी सी मिठाई के लिए लड़ता देख में मुस्कुरा दिया तभी मुख्य अघोरी ने कहा बताओ क्या जिज्ञासा थी. मैंने कहा की कुछ खास नहीं बस आपको देखना था और उस काली माता की मूर्ति को,,,
उन्होने कहा जाओ दर्शन कर के आ जाओ मैं कंदरा के अंदर गया अत्यंत भयंकर रूप मे काले पत्थर से बनी काली की मूर्ति देखकर ठिठक गया मगर माता कह कर अपना माथा उनकी चरणों पर टेका मगर मसानी राख मेरे माथे पर लाग चुकी थी इतने मैं अघोरी मुखिया अंदर आ गए एक जिज्ञासा शांत हुई ना, मैंने हां मे सर हिलाया, अब दूसरी जिज्ञासा की बारी है... जानना चाहते हो ना हम कौन है उससे भी अधिक शिव कौन है, वैराग्य क्या है? मेरा सिर्फ सिर हिला उन्होने काली माता के चरणों से एक मुट्ठी भर राख उठा ली ये है सत्य, और वैराग्य कोई कहानी या सच नहीं जो मैं कह कर सुनाऊँ ये एक भाव है कण कण तक महसूस करो हर हर महादेव, साथ के अघोरी भी हर हर महादेव का घोष करने लगे उन्होने वो राख हवा मे उड़ा दी,
वो राख हवा मे उड़ कर मेरे भी शरीर पर आने लगी, और लिपटने लगी, मैंने अपनी आंखे बंद कर ली, एकमात्र भाव उत्पन्न हुआ मेरा अस्तित्व ही क्या है, मेरा मोह मेरा जिंदगी में पैसे कमाने का सपना आगे बढ़ने का सपना सब पूर्ण ना होते हुए भी सब पूर्ण हुआ, जिंदगी के लक्ष्यों का जिंदगी से कटाव हुआ मैंने महसूस किया मेरे शरीर का प्रत्येक अंग का लक्ष्य ईश्वर हो गया,, सब कुछ एक दम शांत एक दम निश्चित अचल परिवर्तन की इच्छा समाप्त,, एक धीमा स्वर दांये कान मैं शायद पूर्ण अनहद ध्वनि. मैं इस अवस्था मैं 3 घंटे स्थिर रहा.
मगर महसूस 5 मिनट हुआ सा लगा 3 बज चुके थे आधे अघोरी जा चुके थे, मैं शांत ही बैठा रहा उन्होने भी कुछ ना कहा, सुबह होने को थी अब मैं भी सामान्य हो चुका था, उन्होनें कहा महादेव भला करे फिर मिलेंगे कभी ना कभी, मैंने भी हाथ जोड़ कर प्रणाम किया वापस आने के लिए निकल पड़ा, मगर अब समझा क्यू महादेव को शमशान प्रिय है, क्यू की वैराग्य की अनुभूति तभी संभव है जब हम हमारे अंत को जान ले, जब तक शरीर है कर्म करे कृष्ण की बात माने, अंत समय वैराग्य शिव की बात...
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