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Sunday, 19 July 2020

अंगकोर वाट मंदिर – रहस्य



अंगकोर वाट मंदिर – रहस्य

आस्था का कोई नियत स्थान तो नही होता परंतु नियत स्थानों से आस्था का उद्भव अवश्य हो सकता है। कभी आस्था से आस्था-स्थल का उदगम होता है तो कभी आस्था-स्थल से आस्था का.. और सदियों तक दोनों का संगम चलता रहता है। ऐसी ही आस्था का स्मारक है मीकांग (Mekong) नदी के किनारे सिमरिप क्षेत्र में बना अंगकोर वाट का मंदिर.. जो अब तक का विश्व का सबसे बड़ा विदित मंदिर परिसर है और कंबोडिया में स्थित है जिसे पौराणिक समय में कंबोदेश के नाम से जाना जाता था। कंबोडियाई वर्षावन में स्थित और विश्व विरासत में शामिल ये मंदिर परिसर, एशिया के सबसे मत्वपूर्ण वास्तुशिल्प की धरोहरों में एक माना जाता है।

      इस स्थान का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि नासा (NASA) ने उपग्रह चित्रण, हवाई चित्रण, विमान आधारित रडार डेटा, लेजर सर्वेक्षण आदि के माध्यम से इस मंदिर की वास्तुशिल्प, स्थिति और पौराणिकता का लंबे समय तक गहन अध्ययन किया है। यह परिसर 160 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्रफल में फैला हुआ है जिसमे सैकड़ों मंदिर स्थित है। यदि अंगकोर शहरी क्षेत्र की बात करे तो नए अध्ययन कहते है कि यह 900 वर्ग किलोमीटर से लेकर 1000 वर्ग किलोमीटर तक फैला था जो वर्तमान न्यूयॉर्क शहर का लगभग 4 गुना है और औद्योगिकीकरण से पहले संसार का अब तक खोजा गया, सबसे बड़ा शहर था।

        मंदिर परिसर 174 मीटर चौड़ी खाई से घिरा हुआ है जो हिन्दू मान्यता के अनुसार, ब्रह्मांड के किनारों पर स्थित लौकिक महासागर को व्यक्त करता है। पश्चिमी सिरे पर स्थित पत्थर का मार्ग, प्रतीकात्मक लौकिक महासागर और ब्रह्मांड से होता हुआ, मंदिर के गर्भ गृह तक जाता है जो भगवान विष्णु का मंदिर है। मंदिर परिसर में कई इमारतें स्थित है जो किसी पर्वत की तरह उभरते हुए चबूतरों पर स्थित है। अंगकोर वाट मंदिर के मध्य में 5 मीनारें है जो हिन्दू मान्यता के अनुसार मेरु पर्वत की 5 चोटियों का प्रतीक है। ये गोल मीनारें परिसर के अंतरतम चबूतरे के कोनो और केंद्र को चिन्हित करती है। वास्तव में प्राचीन संस्कृत साहित्य में मेरु पर्वत का अदभुत वर्णन है जो भौगोलिक तथ्यों से भरा हुआ है चूंकि यह अभी भी शोध का विषय है इसलिए सामान्यतः लोगों के लिए काल्पनिक है लेकिन अभी इतना अवश्य सिद्ध होता है कि प्राचीन भारतीय, उस समय में भी जब यातायात के साधन नगण्य थे, पृथ्वी के दूरतम प्रदेशों तक जा पहुँचे थे।
     

मत्स्यपुराण में सुमेरु या मेरु पर देवगणों का निवास बताया गया है। कुछ लोगों का मत है कि पामीर पर्वत को ही पुराणों में सुमेरु या मेरु कहा गया है। मेरु पर्वत पौराणिक रूप से वो पर्वत है जिस पर ब्रह्मा और अन्य देवताओं का धाम है और ये शोध का विषय है कि यह पृथ्वी का ही हिस्सा है या फिर ब्रह्माण्ड का.. क्योकि भारत में खगोलिकी की अति प्राचीन, उज्ज्वल एवं उन्नत परम्परा रही है। वास्तव में भारत में खगोलीय अध्ययन वेद के अंग (वेदांग) के रूप में १५०० ईसा पूर्व या उससे भी पहले शुरू हुआ और वेदांग ज्योतिष इसका सबसे पुराना ग्रन्थ है।

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