आषाढ महिने कि एकादशी यांनी ग्यारवे दिन पंढरपूर पुहचने के लिये महाराष्ट्र और कर्नाटक के लाखो लोग एक पवित्र भावना लेकर पंढरपूर के भगवान विठोबा के दर्शन के लिये निकाल पडते हे, महाराष्ट्र मे वारकरी संप्रदाय कि अपने गाव से पंढरपूर तक जानेवाली दिंडी यांनी यात्राये हिंदू धर्म कि पवित्रता का दर्शन करती हे... आज के एपिसोड मे हम बात करेंगे पंढरपूर के भगवान विठ्ठल के बारे मे
एकबार पुंडलिक नाम का एक युवक काशी की यात्रा पर निकल पड़ा था, जब वो जंगल से गुजर रहा था, तब वो रास्ता भटक गया, भटके हुये रास्ते पर उसे एक आश्रम दिखा ... वो आश्रम था कुक्कुट ऋषि का. आश्रम पुहचकर पुंडलिक ने महर्षि कुक्कुट से काशी जाने का रास्ता पूछा. तब ऋषि ने बताया की वे आजतक कभीभी काशी नही गए और इसीकरण उन्हे रास्ता भी पता नाही हे, पुंडलिक ने ये सुनते ही ऋषि का उपहास किया और कहा "किस तरह के ऋषि हो आप ??, जो अपने आप को ऋषि समजते हो और एकबार भी काशी नहीं गए". कुक्कुट ऋषि का उपहास कर पुंडलिक आगे अपनी यात्रा के लिए निकल पड़ा.
पुंडलिक आश्रम से थोड़ी ही दूर गया था की उसे कुछ स्रीयो की आवाज सुनाई देने लगी.. उसने देखा की आवाज कहा से आ रही हे. इधर उधर देखने के बाद पता चला की आवाज तो आश्रम सेही आ रही हे, और आश्रम में तो कोई स्री नहीं थी... वो विस्मय से फिर आश्रम की तरफ चल दिया...
जब वो आश्रम पुहचा तो उसने पाया की ३ औरते पानी से आश्रम को साफ़ कर रही हे, जब उसने उनसे पूछा तो उसे पता चला की वो तिन औरते माँ गंगा, माता सरस्वती और माँ यमुना हे. पुंडलिक आश्चर्य से दंग रह गया ... की कैसे ये तीनो उस ऋषि के आश्रम की पवित्रता बनाये हुए हे जिसे काशी के दर्शन तो छोडिये... काशी का मार्ग तक पता नहीं हे. तब माँ गंगा, यमुना और सरस्वती ने उसे बताया की "पवित्रता और श्रधा तो मन में होती हे ये जरुरी नहीं हे की आप पवित्र स्थलों की यात्रा करे या फिर कर्मकांड करे, कुक्कुट ऋषि ने अपने जीवन में पवित्र मन से अपने माँ-बाप की सेवा की हे, और इसीकारण उन्होंने इतना पुण्य अर्जित किया हे की वे मोक्ष प्राप्त कर सकते हे" पुंडलिक अपने बूढ़े माँ-बाप को छोड़ काशी निकला था, इस बात से उसकी आंखे खुल गयी, और वो वापस घर पुहचा और अपने मा और पिता को लेकर उसने काशी की यात्रा करी
इस घटना के बाद, पुंडलिक का... जैसे जीवन ही बदल गया था. अब उसका जीवन अपने माँ-बाप की सेवा में चला जाता था. पुंडलिक की मातृ-पितृ भक्ति इतनी असीम थी की, एकबार भगवान कृष्ण को भी पुंडलिक के घर जाने का मोह हुवा.
भगवन कृष्ण जब पुंडलिक के घर पुहचे तो पुंडलिक अपने माता-पिता की सेवा कर रहा था. अपने घर मेहमान बन कर भगवन आये देखकर उसे काफी ख़ुशी हुये पर उसका मन थोडा भी विचलित नहीं हुवा, उसने अपने पास पड़ी एक इट को भगवन को खड़े रहने के लिए दीया और अपणे माता पिता कि सेवा मे लीन होगया.
माता-पिता की सेवा होने के बाद पुंडलिक भगवान कृष्ण के सामने गया और उनसे क्षमा मांगी, भगवन कृष्ण उनकी मातृ-पितृभक्ति को देख काफी प्रसन्न हुए और उन्हें वर मांगने के लिए कहा.
पुंडलिक ने कहा "भगवान् मेरे लिए इंतजार करते रहे, इस से ज्यादा क्या हो सकता हे" पर भगवन कृष्ण ने आग्रह किया, तो पुंडलिक बोले की "आप पृथ्वीपर निवास करे, और यही रहकर अपने भक्तो पर अपनी छाया बनाये रख्खे" तब से भगवन कृष्ण उसी इट पर पंढरपूर क्षेत्र में खड़े हे विठोबा शब्द का अर्थ भी यही होता हे "भगवन जो इट पर खड़ा हे"
पंढरपुर में स्थित भगवन विठ्ठल की मूर्ति स्वयंभू हे यानि इसे किसी भी मूर्तिकार ने नहीं तराशा हुवा, और वो अपने अस्तित्व मेंही उसी आकार में आई हे
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