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Tuesday, 23 June 2020

लोग यहां करते हैं बिना सिर वाली देवी की पूजा










लोग यहां करते हैं बिना सिर वाली देवी की पूजा


 रजरप्पा थाना क्षेत्र में स्थित है छिन्नमस्तिका मंदिर। यह शक्तिपीठ होने के साथ-साथ पर्यटन का मुख्य केंद्र भी रहा है। असम में कामाख्या मंदिर के बाद इसे दूसरा तीर्थ स्थल के रूप में माना जाता है। मां के मंदिर में मन्नतें मांगने के लिए लोग लाल धागे में पत्थर बांधकर पेड़ या त्रिशूल में लटकाते हैं। -मन्नत पूरी हो जाने पर उन पत्थरों को दामोदर नदी में प्रवाहित करने की परंपरा है। मंदिर के अंदर जो देवी काली की प्रतिमा है, उसमें उनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं
 हाथ में अपना ही कटा हुआ मस्तक है।
















पौराणिक कथाओं के अनुसार, कहा जाता है कि एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने आई थीं।
-स्नान करने के बाद सहेलियों को इतनी तेज भूख लगी कि भूख से बेहाल उनका रंग काला पड़ने लगा। उन्होंने माता से भोजन मांगा। माता ने थोड़ा सब्र करने के लिए कहा, लेकिन वे भूख से तड़पने लगीं।
- सहेलियों ने माता से कहा, हे माता। जब बच्चों को भूख लगती है तो मां अपने हर काम भूलकर उसे भोजन कराती है। आप ऐसा क्यों नहीं करतीं।
-यह बात सुनते ही मां भवानी ने खड्ग से अपना सिर काट दिया, कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और खून की तीन धाराएं बह निकलीं।
-सिर से निकली दो धाराओं को उन्होंने अपनी सहेलियों की ओर बहा दिया। बाकी को खुद पीने लगीं। तभी से मां के इस रूप को छिन्नमस्तिका नाम से पूजा जाने लगा। रात में मां करती है यहां विचरण!
-यहां प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में साधु, माहत्मा और श्रद्धालु नवरात्रि में शामिल होने के लिए आते हैं। 13 हवन कुंडों में विशेष अनुष्ठान कर सिद्धि की प्राप्ति करते हैं।
- रजरप्पा जंगलों से घिरा हुआ है। जहां दामोदर व भैरवी नदी का संगम भी है। शाम होते ही पूरे इलाके में सन्नाटा पसर जाता है। लोगों का मानना है कि मां छिन्नमिस्तके यहां रात्रि में विचरण करती है।
- इसलिए एकांत वास में साधक तंत्र-मंत्र की सिद्धि प्राप्ति में जुटे रहते हैं। दुर्गा पूजा के मौके पर आसाम, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तिसगढ़, ओड़िशा, मध्य प्रदेश, यूपी समेत कई प्रदेशों से साधक यहां जुटते हैं। मां छिन्नमस्तिके की विशेष पूजा अर्चना कर साधना में लीन रहते हैं। सैकड़ों बकरों की चढ़ाई जाती है बलि
-मान्यता है कि यह मंदिर महाभारतकाल का है। मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों में मतभेद है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है।
-सामने बलि स्थल है, जहां रोजाना सैकड़ों बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। यहां शादियां भी होती हैं। यहां एक पाप हरण नाम का कुंड है।
-माना जाता है कि रोगग्रस्त लोग इसमें स्नान करते हैं तो उनकी बीमारी दूर हो जाती है। मंदिर के अंदर मां का शिलाखंड है, जिसमें दक्षिण की ओर मुख किए मां के दर्शन होते हैं।
- मंदिर के गोलाकार गुम्बद की शिल्प कला असम के कामाख्या मंदिर के शिल्प से मिलती है। मंदिर में सिर्फ एक ही द्वार है।

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