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Saturday, 9 May 2020

अर्द्धनारीश्वर शिव का रहस्य



अर्द्धनारीश्वर शिव का रहस्य !!

इस मूर्ति में आधा शरीर पुरुष अर्थात 'रुद्र' (शिव) का है और आधा स्त्री 
अर्थात 'उमा' (सती, पार्वती) का है।

दोनों अर्द्ध शरीर एक ही देह में सम्मिलित हैं।
उनके नाम 'गौरीशंकर', 'उमामहेश्वर' और 'पार्वती परमेश्वर' हैं।
दोनों के मध्य काम संयोजक भाव है।
नर (पुरुष) और नारी (प्रकृति) के बीच का संबंध अन्योन्याश्रित है। 
पुरुष के बिना प्रकृति अनाथ है,प्रकृति के बिना पुरुष क्रिया रहित है। 
सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो स्त्री में पुरुष भाव और पुरुष में स्त्री भाव रहता 
है और वह आवश्यक भी है।

ब्रह्मा की प्रार्थना से स्त्रीपुरुषात्मक मिथुन सृष्टि का निर्माण करने के 
लिए दोनों विभक्त हुए।

शिव जब शक्तियुक्त होता है,तो वह समर्थ होता है। 
शक्ति के अभाव में शिव 'शव' के समान है।

अर्द्धनारीश्वर की कल्पना भारत की अति विकसित बुद्धि का परिणाम है।
भारतीय कला का यह प्रतीक स्त्री - पुरुष के अद्वैत का सूचक है।

सृष्टि के प्रारंभ में जब ब्रह्माजी द्वारा रची गई मानसिक सृष्टि विस्तार न 
पा सकी, तब ब्रह्माजी को बहुत दुःख हुआ। 

उसी समय आकाशवाणी हुई ब्रह्मन्! अब मैथुनी सृष्टि करो। 

आकाशवाणी सुनकर ब्रह्माजी ने मैथुनी सृष्टि रचने का निश्चय तो कर 
लिया, किंतु उस समय तक नारियों की उत्पत्ति न होने के कारण वे अपने 
निश्चय में सफल नहीं हो सके। 

तब ब्रह्माजी ने सोचा कि परमेश्वर शिव की कृपा के बिना मैथुनी सृष्टि 
नहीं हो सकती। 

अतः वे उन्हें प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करने लगे। 

बहुत दिनों तक ब्रह्माजी अपने हृदय में प्रेमपूर्वक महेश्वर शिव का ध्यान 
करते रहे। 

उनके तीव्र तप से प्रसन्न होकर भगवान उमा-महेश्वर ने उन्हें अर्द्धनारीश्वर 
रूप में दर्शन दिया। 

महेश्वर शिव ने कहा-

पुत्र ब्रह्मा! तुमने प्रजाओं की वृद्धि के लिए जो कठिन तप किया है, 
उससे मैं परम प्रसन्न हूं।

मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूंगा। 

ऐसा कहकर शिवजी ने अपने शरीर के आधे भाग से उमा देवी को अलग 
कर दिया।

ब्रह्मा ने कहा.-एक उचित सृष्टि निर्मित करने में अब तक मैं असफल रहा हूं। 

मैं अब स्त्री-पुरुष के समागम से मैं प्रजाओं को उत्पन्न कर सृष्टि का विस्तार 
करना चाहता हूं।

परमेश्वरी शिवा ने अपनी भौंहों के मध्य भाग से अपने ही समान कांतिमती 
एक शक्ति प्रकट की। 

सृष्टि निर्माण के लिए शिव की वह शक्ति ब्रह्माजी की प्रार्थना के अनुसार 
दक्षकी पुत्री हो गई।

इस प्रकार ब्रह्माजी को उपकृत कर तथा अनुपम शक्ति देकर देवी शिवा 
महादेव जी के शरीर में प्रविष्ट हो गईं,यही अर्द्धनारीश्वर शिव का रहस्य है 
और इसी से आगे सृष्टि का संचालन हो पाया, 

जिसके नियामक शिवशक्ति ही हैं।
शिव अर्द्ध नारीश्वर क्यों ?

हिंदू धर्म के आराध्य देव भगवान शंकर को अर्द्ध नर नारीश्वर के रूप में 
भी दिखाया गया है, जिसमें भगवान का आधा शरीर स्त्री का तथा आधा 
पुरुष का है। 

भगवान के इस अर्द्ध नारीश्वर के रूप के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। 

विज्ञान कहता है कि मनुष्य में 46 गुणसूत्र पाए जाते हैं। 
गर्भाधान के समय पुरुषों के आधे क्रोमोजोम्स (23) तथा स्त्रियों के आधे 
क्रोमोजोम्स (23) मिलकर संतान की उत्पत्ति करते हैं। 
इन 23-23 क्रोमोजोम्स के संयोग से संतान उत्पन्न होती है। 

जो बात विज्ञान आज कह रहा है। 
अध्यात्म ने उसे हजारों साल पहले ही ज्ञात करके कह दी थी कि पुरुष में आधा 
शरीर स्त्री का तथा स्त्री में आधा शरीर पुरुष का होता है। 
इसी कारण हिंदू धर्म में भगवान शंकर को अर्द्ध नारीश्वर रूप में दिखाया गया है। 

सृष्टि रचना में भी पुरुष एवं स्त्री के सहयोग की बात कही गई है। 
दोनों मिलकर ही पूर्ण होते हैं इसलिए हिंदुओं के अधिकांश देवताओं को स्त्रियों के 
साथ दिखाया जाता है।

हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य स्त्री के बिना पूर्ण नहीं माना जाता क्योंकि वह 
उसका आधा अंग है। 
अकेला पुरुष अकेला है। 
इसी कारण पत्नी को अर्द्धांगिनी भी कहा जाता है।

अर्द्धनारीश्वर स्तोत्र --

१. चाम्बेये गौरार्थ शरीराकायै कर्पूर गौरार्थ 
शरीरका तम्मिल्लकायै च जटाधराय 
नमः शिवायै च नमः शिवाय .

चपंगी फूल सा हरित पार्वतिदेविको अपने अर्द्ध शरीर को जिसने दिया है
कर्पूर रंग -सा जटाधारी शिव को मेरा नमस्कार.

२. कस्तूरिका कुंकुम चर्चितायै चितारजः पुंज 
विचर्चिताय कृतस्मारायै विकृतस्मराय
नमः शिवायै च नमः शिवाय .

कस्तूरी -कुंकुम धारण कर अति सुन्दर लगनेवाली पार्वती देवी को जिसने 
अपने अर्द्ध देह दिया हैं,उस शिव को नमस्कार.
अपने सम्पूर्ण शरीर पर विभूति मलकर दर्शन देनेवाले शिव को नमस्कार.
मन्मथ के विकार नाशक शिव को नमकार.

३. जणत क्वणत कंगण नूपुरायै पादाप्ज 
राजत पणी नूपुराय .हेमांगदायै च पुजंगदाय 
नमः शिवायै च नमः शिवाय

कंकन -नूपुर आदि आभूषण पहने पार्वती देवी को पंकज पाद के परमेश्वर ने 
अपने अर्द्ध शरीर दिया है.स्वर्णिम वर्ण के उस शिव को नमस्कार.

४. विशाल नीलोत्पल लोचनायै विकासी पंकेरुह 
लोचनाय.समेक्षणायै विशामेक्षनाय
नमः शिवायै च नमः शिवाय .

विशालाक्षी पार्वती देवी को अपने अर्ध शरीर दिए त्रिनेत्र परमेश्वर को नमस्कार .

५. मंदार माला कलितालकायै कपालमालंगित 
सुन्दराय दियाम्बरायै च दिगम्बराय 
नमः शिवायै च नमः शिवाय .

मंदार पुष्प माला पहनी अति रूपवती दिव्य वस्त्र धारिणी पार्वती देवी को 
कपाल मालाधारी शिव ने अपने अर्द्ध शरीर दिया है.
उस परमेश्वर को नमस्कार.

६.अम्बोधर -श्यामल कुंतालायै तडित्प्रभा 
ताम्ब्र जटाधराय निरीश्वराय निखिलेश्वराय 
नमः शिवायै च नमः शिवाय .

श्याम बालों से ज्वलित पार्वतिदेवी को लाल जटाधारी परमेश्वर ने अपने 
अर्द्ध शरीर दिया है.उस परमेश्वर को नमस्कार है 

७. प्रपंच सृष्टयुन्मुख लास्य्कायै समस्त संहारक 
तांडवाय.जगज्जनन्यै जग देहपितरे
नमः शिवायै च नमः शिवाय .

प्रपंच स्रुष्टिकर्त्री शोभित सुन्दर नाट्य कलाकारिण जगत जननी पार्वती देवी 
को अखिल लोक के साहार के अघोर तांडव नृत्य के परमेश्वर ने अपने अर्द्ध 
तन दिया है.उस परमेश्वर को मेरा नमस्कार.

८.प्रदीप्त रत्नोज्ज्वल कंठलायै स्फुरन महापन्नग 
भूषणाय शिवान वितायै च शिवान विधाय 
नमः शिवायै च नमः शिवाय .

प्रकाशपूर्ण रत्न कुंडल पहनी पार्वती देवी के साथ नागाभरण भूषित शिव मिश्रित हैं.
उस परमेश्वर को मेरा नमस्कार.

९. एतत्पट तष्ठ्क मिष्ट्तम यो भक्त्या स मान्यो पुवी दीर्घजीवी .
प्राप्नोति सौभाग्य मनंतकालम भूयात सदा तस्य समस्त सिद्धिः 

यह अष्ठक सभी इच्छा पूर्ती करने वाला है. इस को जो भक्ति सहित पढेंगे 
उनको सकल सौभाग्य प्राप्त होंगे और सभी सिद्धियाँ भी प्राप्त होंगी 

नमः सर्वहितार्थाय जगदाधारहेतवे।
साष्टाङ्गोऽयं प्रणामस्ते प्रयत्नेन मया कृतः।।
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः।
त्राहि मां पार्वतीनाथ सर्वपापहरो भव।।

ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नमः

प्रार्थनापूर्वक नमस्कारान् समर्पयामि 
ॐ पार्वतीपतये नमः
ॐ नमः शिवाय

कष्ट हरो,,,काल हरो,,,
दुःख हरो,,,दारिद्रय हरो,,,
हर,,,हर,,,महादे

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