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Saturday, 21 March 2020

अछरू माता का रहस्य




ओरछा स्टेट की यह धार्मिक भूमि अब निवाड़ी जिले का हिस्सा हो गई है। प्रथ्वीपुर के समीप स्थित मां अछरूमाता का यह मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र वर्षों से रहा है। एक समय यहां माता की मढ़यिा हुआ करती थी। समय के साथ हुए बदलाव के चलते अब यहां विशाल मंदिर और धर्मशालाएं बन चुकी हैं। यहां नवरात्रि पर लगने वाले मेले के लिए दुकानों का लगना शुरू हो गया है। नवरात्रि में नौ दिन तक विशाल मेले का आयोजन किया जाएगा। मंदिर में भजनों के साथ ही अनेक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। अछरूमात मंदिर पर नौ दिन तक लगने वाले मेले में समूचे बुंदेलखंड से हजारों भक्तों का आना होता है। पुलिस प्रशासन द्वारा मेले की सुरक्षा व्यवस्था बनाए जाने के लिए प्रयास किए गए हैं। ओरछा से 20 किमी दूर पृथ्वीपुर के पास मां अछरूमात का दरबार लगा है, यहां बना कुंड चमत्कारिक होने से लोगों के बीच आस्था का केंद्र बना हुआ है, इसके साथ ही मंदिर में आने वाले श्रद्धालु अपनी-अपनी मनोकामना लेकर यहां आते हैं और अपनी झोली भरकर जाते हैं। अछरू माता मंदिर का इतिहास यादव समाज के गौसेवक अछरू से जुड़ा हुआ है, जिन्हें माता रानी ने अपने दर्शन ही नहीं दिए, बल्कि उन्हें आज भी अछरू माता के नाम से जाना जाता है। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि लगभग 500 वर्ष पुरानी बात है अछरू नाम का एक यादव किसान था और उसकी कुछ भैंस गुम हो गईं थीं, तो उन्हें ढूंढते-ढूंढ़ते लगभग एक महीना हो गया वो वो थक हार के एक जगह बैठ गया। प्यास के मारे उनके प्राण निकले जा रहे थे तो देवी मां ने उन्हें एक कुंड में से निकल कर दर्शन दिए औऱ कहा कि इस कुंड में से पानी पी लो। इसके साथ ही माता ने किसान को उसकी भैंसों का पता भी बता दिया। अछरू नाम के किसान ने कुंड में से पानी पिया और कुंड की गहराई पता करने के लिए उन्होंने अपनी लाठी कुंड में डाली तो वो लाठी नीचे तक चली गई, तो किसान अचम्भित रह गया फिर वो माता के बताए स्थान पर गया तो उन्हें सभी भैंसे मिल गयीं। उनकी लाठी भी उसी तालाब में मिली यह देख अछरू यादव नाम का किसान अचम्भित रह गया और उन्होंने यह सब बात सभी तो बताई। धीरे धीरे लोग इस स्थान पर आने लगे और लोगो की मनोकामनाएं पूर्ण होती चली गईं। देश के हर राज्य से लोग आने लगे और भक्तों ने उस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवा दिया और उस समय से आज तक मंदिर की पूरी देख रेख और पूजा पाठ यादव जाती के बंधु ही करते हैं।

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