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Saturday, 14 March 2020

कुलस्वामिनी तुलजा भवानी मंदिर | Tulja Bhavani Temple Tuljapur



तुलजा भवानी का आदि स्थान महाराष्ट्र के शोलापुर स्थित तुलजापुर गांव में है। कथाओं में जिक्र आता है कि समर्थ गुरु रामदास जी के शिष्य शिवाजी महाराज को भवानी ने रत्नजडि़त तलवार प्रदान की थी जिसके द्वारा उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब से लड़कर विजय हासिल की थी। भवानी महाराष्ट्र की राजदेवी व मराठियों की कुलदेवी हैं। एक दूसरी कथा यह आती है कि भगवती जगदम्बा ने असुरों के साथ संघर्ष करते हुए हाहाकार किया तो उस समय उनके मुख से 32 देवियां शक्ति स्वरूप निकलीं जिनमें से 12 वीं देवी तुलजा भवानी हैं। ये सतयुग की देवी हैं। इन्हीं के दाहिने मां दुर्गा जी की मूर्ति है जिसकी स्थापना पंजाब की धर्ममना रानी ने तुलजा भवानी के दर्शन के बाद किया था। यहां लोक मानस में एक कथा प्रचलित है कि औरंगजेब जब रामेश्‌र्र्वर में मंदिरों को नष्ट कर रहा था तो उसी समय भवानी ने काला भंवरा बनकर उसे दौड़ा लिया। आज भी रामेश्‌र्र्वर में चौरामाता की खंडित प्रतिमा ग्रामीणों द्वारा पूजित है। ऐसी मान्यता है कि मां की ही कृपा से आज तक सातों पट्टी करौना (पंचकोशी क्षेत्र) में किसी भी तरह का प्रकोप नहीं आया। कहते हैं कि मां स्वप्न में ही भक्तों को किसी तरह के अनिष्ट की जानकारी दे देती हैं।


तुलजा भवानी और चामुण्डा माता
देशभर में कई जगह पर माता तुलजा भवानी और चामुण्डा माता की पूजा का प्रचलन है। खासकर यह महाराष्ट्र में अधिक है। दरअसल माता अम्बिका ही चंड और मुंड नामक असुरों का वध करने के कारण चामुंडा कहलाई। तुलजा भवानी माता को  महिषसुर मर्दिनी भी कहा जाता है। महिषसुर मर्दिनी के बारे में हम ऊपर पहले ही लिख आए हैं।

दस महाविद्याएं
दस महाविद्याओं में से कुछ देवी अम्बा है तो कुछ सती या पार्वती हैं तो कुछ राजा दक्ष की अन्य पुत्री। हालांकि सभी को माता काली से जोड़कर देखा जाता है। दस महाविद्याओं ने नाम निम्नलिखित हैं। काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला। कहीं कहीं इनके नाम इस क्रम में मिलते हैं:-1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।

तुलजा भवानी मंदिर की कहानी – Story of Tulja Bhavani Temple

कृतयुग में ऋषि कर्दम की पत्नी तपस्वी अनुभूति एक बार कड़ी तपस्या कर रही थी। लेकिन उसकी तपस्या भंग करने लिए वहापर एक कुकुर नाम का राक्षस आ गया और तपस्वी अनुभूति को सताने की कोशिश करने लगा।
उस समय तपस्वी अनुभूति ने देवी भगवती की प्रार्थना की, उस राक्षस से बचाने के लिए विनती की। उनकी प्रार्थना और विनती सुनकर देवी भगवती वहापर प्रकट हुई और देवी और राक्षस में लड़ाई हुई और देवी ने उस राक्षस को मार डाला।
उसके बाद तपस्वी अनुभूति ने देवी को वहा के पर्वत पर रहने की विनती की और देवी ने उनकी बात को सुनकर वहापर रहने का फैसला किया।
जब भी कोई भक्त पवित्र मन से देवी को मदत करने के लिए बुलाता है तो देवी आती है और उसकी हर इच्छा पूरी करती है। इसीलिए भी इस देवी को त्वरिता-तुरजा-तुलजा भवानी देवी कहा जाता है।
देवी जिस गाव में है वह गाव बालाघाट सीमा पर स्थित है। इस मंदिर का कुछ हिस्सा हेमाडपंथी शैली में बनाया गया है। राष्ट्रकूट और यादव के शासनकाल से यह मंदिर है। कुछ लोगो को लगता है की यह मंदिर 17 वी या फिर 18 वी सदी में बनाया गया था।
तुलजा भवानी मंदिर की वास्तुकला – 
देवी का मंदिर का प्रवेशद्वार दक्षिण दिशा की ओर मुख बनाये दिखाई देता है और इस दरवाजे को ‘परमार’ कहा जाता है। जगदेव परमार देवी का एक महान भक्त था उसने सात बार अपना शीश काटकर देवी को अर्पण किया था।इस घटना का वर्णन इस मंदिर के दरवाजे पर लिखे एक कविता में बताया गया है। इस मंदिर के मुख्य भवन में देवी के मंदिर का जो गुबंद है वह भी दक्षिण की तरफ़ ही है। इस मंदिर में माता तुलजा भवानी की जो मूर्ति है वह गण्डकी पत्थर से बनायीं गयी है और माता की मूर्ति चांदी के पत्थर पर स्थापित की गयी है।

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