भगवान विष्णु ने धरती पर दस अवतार लिए जिनमे से मत्स्य अवतार और कुर्म अवतार की कहानी हम पिछले लेखो में बता चुके है | भगवान विष्णु का तीसरा अवतार वराह अवतार Varaha Avatar था जिसमे भगवान विष्णु ने पृथ्वी को बचाने के लिए एक वराह के रूप में अवतार लिया था | मित्रो वैसे वराह का अर्थ सूअर होता है लेकिन शब्दों की सुन्दरता के लिए सूअर शब्द के स्थान पर पुरी पोस्ट में वराह शब्द का प्रयोग करेंगे इसलिए आप इसका अर्थ समझ लेवे | आइये अब आपको भगवान विष्णु के वराह अवतार की कहानी Varaha Avatar Story in Hindi बताते है|Varaha Avatar Story
एक दिन भगवान विष्णु अपन वैकुण्ठ निवास में विश्राम कर रहे थे तभी भगवान ब्रह्मा के चार पुत्र उनसे मिलने के लिए आये | उनको द्वार पर पहरा देने वाले दो द्वारपालों जय और विजय ने रोक लिया | उन्होंने ब्रह्मा के पुत्रो को अंदर जाने की अनुमति नही दी क्योंकि उनके स्वामी विश्राम कररहे थे | ब्रह्म पुत्र द्वारपालों की बात सुनकर क्रोधित हो गये और दोनों को श्राप दे दिया कि वो दैवीय पद छोडकर पृथ्वी पर मनुष्य रूप में जन्म लेंगे |
कुछ देर बाद भगवान विष्णु द्वार पर पहुचे और जय विजय के व्यवहार के लिए माफी माँगी और उनसे कहा कि वो दोनों तो केवल अपना कर्तव्य निभा रहे थे | इस क्षतिपूर्ति के लिए ब्रह्म पुत्रो ने कहा कि ये श्राप तब हट जाएगा जब जय विजय मानव रूप में भगवान विष्णु के हाथो से मृत्यु प्राप्त करेंगे | इसलिए जय और विजय ने धरती पर हिरणाकश्यप और हिरण्याक्ष के रूप में जन्म लिया | जब उन दोनों ने जन्म लिया तब स्वर्ग हिल गया था | इंद्र भगवान विष्णु के पास गये और कहा “उनका जन्म होते ही इतनी उथल पुथल हो गयी है लेकिन जब वो बड़े होंगे  तब क्या होगा ? ” | भगवान विष्णु ने इंद्र को विश्वास दिलाया कि वो उन दोनों का समय आने पर विनाश कर देंगे और किसी को कोई हानि नही हगी ।
वर्ष बाद बाद हिरण्याक्ष जवान हो गया | वो भगवान ब्रह्मा का अनन्य भक्त था | उसने भगवान ब्रह्मा के लिए तपस्या की तो ब्रह्मा प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने को कहा | हिरण्याक्ष ने वरदान माँगा कि ना कोई कोई देवता , ना कोई मनुष्य और ना कोई असुर उसे मार सके  | भगवान ब्रह्मा ने उसको ये वरदान देकर तथास्तु कहा | हिरण्याक्ष ने स्वयं को अमर मानते हुए अपनी ताकत दिखाना शुरू कर दिया | उसने अपनी कमर से समुद्र को मंथ दिया जिसे समुद्र में लहरे उठने लगी | ये दृश्य देखकर वरुण देव काफी भयभीत हो गये और छिपने के लिए स्थान ढूंढने लग गये |
हिरण्याक्ष ने उनका सामना करते हुए मुकाबले के लिए चुनौती दे दी | वरुण देव ने उसका सामना करने की बजाय अपनी हार स्वीकार कर ली क्योंकि उसकी ताकत को देखते हुए उससे जीतना नामुनकिन था | हिरण्याक्ष का सीना गर्व से चौड़ा हो गया | उसने अब वापस समुद्र का मंथन करना  शुरू कर दिया और समुद्र पर चलने लगा | मार्ग में उसको नारद मुनि मिले और उससे पूछा “क्या इस संसार में मुझसे ताकतवर कोई ओर है  ?” नारद मुनि ने जवाब दिया “हां , भगवान विष्णु सबसे ताकतवर है “|
हिरण्याक्ष ने भगवान विष्णु को खोजना शुरू कर दिया लेकिन उसको विष्णु भगवान कही नही मिले | तब उसने पुरी पृथ्वी को गोल गेंद के रूप में एकत्रित कर लिया और विष्णु भगवान की खोज में जल के अंदर पाताल लोक में चला गया | वराह अवतार में पृथ्वी को एक युवती भूदेवी के रूप में दर्शाया गया है | सभी देवता चिंतित हो गये और विष्णु भगवान से मदद के लिए भागे | उन्होंने कहा “भगवान ,हमे बचा लो , हिरण्याक्ष भूदेवी को उठाकर पाताल में जाकर  अदृश्य हो गया है  ” | भगवान विष्णु ने धीरजता से उत्तर दिया “तुम चिंता मत करो , मुझे सब पता है  कि वो भूदेवी को पाताल लोक में लेकर चला गया है और मै शीग्र ही भूदेवी को पुनः अपने स्थान पर ले आऊंगा “|