जानिए क्यूँ आई थी माँ काली की जीभ बाहर | Story of Maa Kali
महाकाली
भगवती दुर्गा का एक स्वरूप महाकाली का भी है जिनकी
उत्पत्ति जिनकी उत्पत्ति राक्षसों के नाश के लिए हुई थी
। स्वयं काल भी माँ काली से भाय खाता है और इनका क्रोध ऐसा है की संपूर्ण संसार की
शक्तियां मिल कर भी उनके गुस्से पर काबू नहीं पा सकती। माँ का यह विद्वंश रूप है पर यह
रूप सिर्फ उनके लिए है जो दानवीय प्रकति के है जिनमे कोई दयाभाव नहीं है। यह रूप
बुराई को खत्म करके अच्छाई को जीत दिलवाने वाला रूप है अत: माँ काली अच्छे
मनुष्यों की शुभेछु है और पूजनीय है। शास्त्रों मे माँ काली के क्रोध से जुड़ी एक बहुत
ही रोचक कथा वर्णित है जो इस प्रकार है ।
बात उस
समय की है जब दैत्य रक्तबीज ने कठोर ताप केबल पर एक ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया था
जिससे अगर उसके रक्त की एक भी बूंद भूमि पर गिरती है तो उससे अनेक दैत्य
पैदा हो जाएंगे । उसने अपने शक्तियों का प्रयोग निर्दोष लोगों
पर करना शुरू कर
दिया।
उसने अपनी शक्तियों का प्रयोग निर्बल और निर्दोषलोगों
पर करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे उसने अपना आतंक तीनों लोको पर मचा दिया । देवताओं के वीरुध रक्तबीज का भयंकर
युद्ध हुआ, देवतागण अपनी पूरी शक्ति लगाकर रक्तबिज का नाश करने को तत्पर थे मगर जैसे ही उसके शरीर
की एक भी बूंद खून धरती पर गिरती उस एक बूंद से स अनेक रक्तबीज पैदा हो जाते।
सभी देवता मिलकर महाकाली की शरण मे गए। देवताओं कीरक्षा के
लिए माँ काली ने विकराल रूप लेकर युद्ध भूमि मे प्रवेश किया , अस्त्र सस्त्र से
सुसजित्त माँ के एक हाथ मे खप्पर था और गले मे खोपड़ीयों की माला ।
उन्होने राक्षसों
का वध करना आरंभ कर दिया परंतु जैसे ही रक्तबीज के खून की एक भी बूंद भूमि पर गिरती उससे अनेक दानवों का जन्म हो
जाता तब माँ ने रक्तबीज के खून को अपने खप्पर मे रोकना शुरू किया और उसका खून पीने
लगीं। इस तरह महाकाली ने रक्तबीज का वध किया लेकिन तब तक महाकाली का गुस्सा इतना
विक्राल रूप से चुका था की उनको शांत करना जरुरी था मगर हर कोई उनके समीप जाने से भी
डर रहा था।
सभी देवतागण
भगवान शिव के पास गए और महाकाली कोशांत करने के लिए उनसे प्रार्थना करने लगे। तब
भगवान शिव उनको शांत करने के लिए वहाँ गए और माँ काली के मार्ग मे लेट गए , जब माँ काली काचरण
स्पर्श भगवान शिव से हुआ तब उनकी जिह्वा बाहर आ गई और माता का क्रोध शांत हो गया ।
शक्ति सम्प्रदाय की
प्रमुख देवी हैं मां काली, यह कुल दस महाविद्याओं के स्वरूपों में स्थान पर हैं.
शक्ति का महानतम स्वरुप महाविद्याओं का होता है. काली की पूजा-उपासना से भय खत्म
होता है. इनकी अर्चना से रोग मुक्त होते हैं. राहु और केतु की शांति के लिए मां काली
की उपासना अचूक है. मां अपने भक्तों की रक्षा करके उनके शत्रुओं का नाश करती हैं.
इनकी पूजा से तंत्र-मंत्र का असर खत्म हो जाता है.
No comments:
Post a Comment