सर्व विपत्ति-हर्ता श्री घंटाकर्ण मंत्र व साधना -
प्रयोग विधिश्री घंटाकर्ण को हिन्दू, बौध और जैन लोक हितकारी देवता के रूप में मानते है ! यह अत्यधिक प्रभावशाली देव माने गए हैं .इनके मंत्र -यन्त्र के अनेको बिभेद मिलते हैं जो की अपने आप में ही एक अद्भुत तथ्य हैं और हर मंत्र यन्त्र से संबंधित एक से एक सरल और उच्च कोटि की साधनाए हैं , जिनका अपने आप में कोई सानी नही , पर
अभी भी वे सारे विधान जो अत्यधिक चमकृत करने वाले हैं साधको के सामनेसामने आनाआना बाकी हैं ! पुराणों में श्री घंटाकर्ण को यक्ष राज कुबेर का सेनापति भी माना जाता है ! दक्ष प्रजापति के यज्ञ को जिन शिव गणों ने भंग किया था श्री घंटाकर्ण भी उनमे से एक थे ! रविन्द्रनाथ टैगोर की एक कथा में श्री घंटाकर्ण का जिक्र है ! केरल मे कृष्ण लीलाओं मे उनकी कृष्ण से भेंट का निर्त्य नाटक मे वर्णन होता है ! हरिवंश पुराण में कहा गया है कि घंटाकर्ण कान में घंटी बाँधकर भगवान शिव कि आराधना करते थे , ताकि शिव नाम के सिवा उन्हें कुछ ना सुनाई दे ! मान्यता है कि तपस्या पूर्ण होने पर शिव जी ने घंटाकर्ण से कहा कि तुम विष्णु जी कि पूजा करो ! भगवान विष्णु ने घंटाकर्ण को आदि बद्री कि उपाधि देकर बद्रीनाथ में स्थान दिया ! उन्होंने कहा कि कलयुग में तुम्हे हर स्थान पर पूजा जाएगा। श्री घंटाकर्ण को भैरव भी माना जाता है , कोणार्क सूर्य मंदिर के पत्थरों पर भी नाव में में नाचते हुए घंटाकर्ण भैरवों की प्रतिमा उत्कीर्ण है. एक प्रतिमा शांत भाव में है और एक रौद्र रूप में है ! कामाख्या आसाम में भी कामाख्या मंदिर के नजदीक श्री घंटाकर्ण का मंदिर है ! उत्तराखंड , गढ़वाल , राजस्थान , गुजरात और दक्षिण भारत मे भी उनकी पूजा होती है !
श्री घंटाकर्ण मूल मंत्र ::----
ॐ घंटाकर्णो महावीर, सर्वव्याधि-विनाशकः !
विस्फोटक भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबलः ||
यत्र त्वं तिष्ठसे देव, लिखितोऽक्षर-पंक्तिभिः !
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वात-पित्त-कफोद्भवाः ||
तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपात्क्षयम् !
शाकिनी भूत वेताला, राक्षसाः प्रभवन्ति न ||
नाकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दंश्यते , अग्निचौरभयं नास्ति, ॐ ह्रीं घंटाकर्ण नमोस्तु ते !
ॐ नर वीर ठः ठः ठः स्वाहा ||
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