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Saturday, 14 December 2019

हिमालय के अदृश्य योगी । True Story । Invisible Monk । Mystery । Himalaya


हिमालय के अदृश्य योगी । True Story । Invisible Monk । Mystery । Himalaya


अनादिकाल से ही हिमालय साधकों को साधना स्थली रहा है। प्रागैतिहासिक कथाओं में शिव समाधि का कैलाश इसी की कोख में अवस्थित है। पार्वती ने यहीं तपस्या की थी, शिव की समाधि यही लगी थी, काम देवता ने शिव की समाधि भंग करने को यही रवि क्रीढा की थी। पांचों तत्वों को प्रमाण रुप में अधिकार में रखने वाला शिव रुप का निरुपण भी यहीं हुआ। ऋषियों, मुनियों ने उषा के अपार वैभव के दर्शन का ब्रह्मज्ञान यही प्राप्त किया। हिमालय की गोद में तपस्या में तल्लीन ऋषियों ने वेद, पुराण, स्मृति व उपनिषदों की संरचना की और यही से सिद्ध योगी तिब्बत, मंगोलिया, मध्य एशिया, चीन, जापान कोरिया व अन्य देशों में गये और वहां हिन्दु संस्कृति की पताका फहराई। 

        हिमालय की गिरी कन्दराओं में अवतरित सिद्ध योगियों का उल्लेख परमहंस योगानंद ने अपनी आत्मकथा ”आटोग्राफी ऑफ ए योगी“ में किया है। समस्त हिमालय में स्थानीय देवी-देवताओं की अपनी महिमामयी स्मृति है और अपना स्वतंत्र अलौकिक अस्तित्व। आज भी उत्तराखण्ड में देवता ”अतराते“ हैं और उनको प्रसन्न करने के लिए ”जागर“ लगता है। उत्तराखण्ड सिद्ध क्षेत्र अनादिकाल से रहा है। यहां अनेकानेक स्थानीय देवता सिद्ध पुरुषों के पूज्य देवी-देवता ही हैं। आज भी यहां नाथ सिद्धियों की परम्परा विद्यमान है और स्थान नामों के साथ ”नाथ“ शब्द जुडा हुआ है जैसे नागनाथ, गणनाथ, बैजनाथ इत्यादि। 
        
        सिद्धगण विश्व में अपने सुवक्त योग देह द्वारा अपनी इच्छानुसार भ्रमण करते हैं और विद्वान नाना प्रकार से जीवों का कल्याण करते ह सिद्ध जीवनमुक्त महापुरुष है। उत्तराखण्ड की साधकों के सिद्ध क्षेत्र के रुप में अत्यधिक गहन निरुपण की आवश्यकता है। यहां के स्थानीय देवी देवता व उनको आह्वान किये जाने वाले मंत्रों को अधिक गहराई से अध्ययन के महत्व को नकारा नहीं जा सकता।
भारत का सिरमौर हिमालय जहां भारत की भौतिक समृद्धि तथा सुख शांति स्रोत रहा है वहीं आध्यात्मिक सुख शांति की पावन गंगा का भी स्रोत रहा है। 
           यह भौतिक गंगा, यमुना आदि का स्रोत जो है ही और चिरन्तन रुप में बना रहेगा। आखिर पुण्य सलिला भागीरथी, गंगा देवलोक से उतर कर यही हिमालय के अधिष्ठाता देव शिवजी के जटाजूट में खेलती, क्रीडा करती हुई भू लोक में गयी और इसी के सिर पर हिमालय से लेकर गंगा-सागर तक साधना-भजन करते हुए मानव ने अपने तीनों पापो- आधिभौतिक, आधि दैविक और आध्यात्मिक से छुटकारा पाते हुए परमानन्द के पारावार में निमग्न हुए जनों का उद्धार किया।

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