Breaking

Post Top Ad

Your Ad Spot

Wednesday, 25 December 2019

How Today Is The Land Of Ravana । आधुनिक समय में रावण की सोने की लंका का आज का लुक क्या देखा आपने !


कहा जाता है कि सोने की लंका का निर्माण शिव ने माता पार्वती के रहने के लिए करवाया था। जो देवशिल्पी विष्वकर्मा के हाथों संपन्न हुआ। लेकिन जब शिव ने महल में गृहप्रवेश हेतु महापंडित को बुलाया तो उसने छल से महादेव से सोने की लंका छीन ली।

        श्रीलंका स्थित रावण की लंका, त्रिकुटाचल पर्वत पर बनी थी। जो तीन पर्वतों के श्रृंखला के साथ श्रृंखलाबद्ध है। इसमें पहला पर्वत सुबेल था जहां रामायण का युद्ध पूर्ण हुआ था। दूसरा पर्वत का नाम नील था जहां पर सोने की लंका स्थापित थी और तीसरा पर्वत सुन्दर पर्वत जहां अशोक वाटिका स्थित थी। यह वाटिका एलिया पर्वतीय क्षेत्र की गुफा में स्थित है, जहां रावण ने सीता को बंधक बना कर रखा था।
     
         रावण की लंका का यह इतिहास पिछले त्रेतायुग से यूं ही चला आ रहा है। मगर समय के साथ जब अनुसंधान कर्ता वहां रिसर्च के लिए पहुंचे, तो उनको वहां अद्भुत प्रमाण मिले जिनमें पहला यह है कि रावण ने चार हवाई अड्डे बनवाये थे। जिनके नाम है उसानगोडा, गुरुलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वरियापोला। दूसरा, लंका में पहुंचने हेतु जिस रामसेतु का निर्माण श्री राम ने करवाया था वह आज भी है हालाकिं उस पर स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं।
गौरतलब है कि रावण की सोने की लंका के इतिहास के बारे में अधिक प्रमाण नहीं है मगर जब बात रावण की नगरी की शुरु की जाती है तो इसके समकक्ष रावण वध की कथा भी दोहराई जाती है। जो एक महाज्ञानी, लेकिन अहंकारी पंडित रावण का वध की कथा है ।

       लंका की स्थिति अमरकंटक में बताने वाले विद्वान हैं इंदौर निवासी सरदार एमबी किबे। इन्होंने सन् 1914 में 'इंडियन रिव्यू' में रावण की लंका पर शोधपूर्ण निबंध में प्रतिपादित किया था कि रावण की लंका बिलासपुर जिले में पेंड्रा जमींदार की पहाड़ी में स्थित है। बाद में उन्होंने अपने इस दावे में संशोधन किया और कहा कि लंका पेंड्रा में नहीं, अमरकंटक में थी।
       इस दावे को लेकर उन्होंने सन् 1919 में पुणे में प्रथम ऑल इंडियन ओरियंटल कांग्रेस के समक्ष एक लेख पढ़ा। जिसमें उन्होंने बताया कि लंका विंध्य पर्वतमाला के दुरूह शिखर में शहडोल जिले में अमरकंटक के पास थी। किबे ने अपना ये लेख ऑक्सफोर्ड विश्‍वविद्यालय में संपन्न इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ ओरियंटलिस्ट्स के 17वें अधिवेशन और प्राच्यविदों की रोम-सभा में भी पढ़ा था। हालांकि उनके दावे में कितनी सचाई है यह तो कोई शोधार्थी ही बता सकता है।
       किबे के दावे को दो लोगों ने स्वीकार किया। पहले हरमन जैकोबी और दूसरे गौतम कौल। पुलिस अधिकारी गौतम कौल पहले रावण की लंका को बस्तर जिले में जगदलपुर से 139 किलोमीटर पूर्व में स्थित मानते थे। कौल सतना को सुतीक्ष्ण का आश्रम बताते हैं और केंजुआ पहाड़ी को क्रौंचवन, लेकिन बाद में उन्होंने रावण की लंका की स्थिति को अमरकंटक की पहाड़ी स्वीकार किया। इसी तरह हरमन जैकोबी ने पहले लंका को असम में माना, पर बाद में किबे की अमरकंटक विषयक धारणा को उन्होंने स्वीकार कर लिया। इसी तरह रायबहादुर हीरालाल और हंसमुख सांकलिया ने लंका को जबलपुर के समीप माना, पर रायबहादुर भी बाद में किबे की धारणा के पक्ष में हो गए जबकि सांकलियाजी हीरालाल शुक्ल के पक्ष में हो गए।

No comments:

Post a Comment

Post Top Ad

Your Ad Spot