के बीच स्थित घने देवदार के जंगलों, हाट कालिका मंदिर पर Gangolihat में पिथौरागढ़ जिले में एक समेटे हुए है अति सुंदर जटिल क्षेत्र है । यह माना जाता है कि देवी काली स्थानांतरित कर दिया उसके निवास से पश्चिम बंगाल के लिए यह जगह है और किया गया है लोकप्रिय देवी क्षेत्र में कभी के बाद से. इस शक्ति-पीठ द्वारा स्थापित गुरु आदि शंकराचार्य की तुलना में अधिक है हजार साल पुराना है । चामुंडा मंदिर के बारे में 2 किमी से यहाँ है एक और पवित्र साइट के आसपास के क्षेत्र में स्थित हाट कालिका मंदिर है ।
मां काली ऐसे बनी कुमाऊ रेजीमेंट की आराध्य देवी कुमाऊ रेजीमेंट का हाट कालिका से जुड़ाव द्वितीय विश्वयुद्ध (1939 से 1945) के दौरान हुआ। बताया जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बंगाल की खाड़ी में भारतीय सेना का जहाज डूबने लगा। तब सैन्य अधिकारियों ने जहाज में सवार सैनिकों से अपने-अपने ईष्ट की आराधना करने को कहा। कुमाऊ के सैनिकों ने जैसे ही हाट काली का जयकारा लगाया तो जहाज किनारे लग गया। इस वाकये के बाद कुमाऊ रेजीमेंट ने मां काली को अपनी आराध्य देवी की मान्यता दे दी। जब भी कुमाऊ रेजीमेंट के जवान युद्ध के लिए रवाना होते हैं तो कालिका माता की जै के नारों के साथ आगे बढ़ते हैं। 1971 की लड़ाई में हमारे देश की सेना ने पाकिस्तान के दांत खट्टे किए थे।
दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के एक लाख जवानों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था। इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। सेना की विजयगाथा में हाट कालिका के नाम से विख्यात गंगोलीहाट के महाकाली मंदिर का भी गहरा नाता रहा है। 1971 की लड़ाई समाप्त होने के बाद कुमाऊ रेजीमेंट ने हाट कालिका के मंदिर में महाकाली की मूर्ति चढ़ाई थी। यह मंदिर में स्थापित पहली मूर्ति थी। बता दें कि हाट कालिका के मंदिर में शक्ति पूजा का विधान है। सेना द्वारा स्थापित यह मूर्ति मंदिर की पहली मूर्ति थी। इसके बाद 1994 में कुमाऊं रेजीमेंट ने ही मंदिर में महाकाली की बड़ी मूर्ति चढ़ाई। इन मूर्तियों को आज भी शक्तिस्थल के पास देखा जा सकता है। कुमाऊं रेजीमेंटल सेंटर रानीखेत के साथ ही रेजीमेंट की बटालियनों में हाट कालिका के मंदिर स्थापित हैं। हाट कालिका की पूजा के लिए सालभर सैन्य अफसरों और जवानों का तांता लगा रहता है। 1971 की भारत-पाक लड़ाई में हिस्सेदार रहे पांखू निवासी रिटायर्ड कैप्टन धन सिंह रावत बताते हैं कि महाकाली का जयकारा लगते ही जवानों में दोगुना जोश भर जाता था।
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