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Thursday, 12 December 2019

gorakhnath gayatri mantra । गोरखनाथ गायत्री मंत्र


Mantra


सत नमो आदेश ! गुरूजी कोआदेश !  गुरूजी ! 
अलख निरंजन कौन स्वरूपीबोलिए ! 
अलख निरंजन ज्योति  स्वरूपीबोलिए !

ओमकारे शिवरूपीसंख्याने साधरुपी , 
मध्याने हंस रुपी , हंस परमहंस दोअक्षर,गुरु तो गोरक्ष,काया तो गायत्री ब्रह्मा, 
सोहं शक्तिशून्य  माता , 
अविगत पिता , अभय पंथ , अचलपदवी , 
निरंजन गोत्र , विहंगम जाति , 
असंख्य प्रवरअनन्त शाखासूक्ष्मवेद , 
आत्मज्ञानीब्रह्मज्ञानी -श्री  गो गोरक्षनाथाय विदमहे-शून्य पुत्राय धीमहीतन्नो गोरक्षनिरंजन : प्रचोदयात ! 
इतना गोरक्ष गायत्री जाप  सम्पूर्णभया ! श्री नाथ जी गुरु जी कोआदेश ! आदेश
 !


 उदयनाथ - धरती स्वरूप 🌷

🌷 'उदय-नाथ' तुम पार्वती, प्राण-नाथ भी आप ।
     धरती-रुप सु-जानिए, मिटे त्रिविध भव-ताप ।।

🌷 नाथ पंथ में उदयनाथ द्वितीय स्थान पर हैं 
🌷 यह नाम शिव की भार्या पार्वती को दिया गया है 
🌷 संपूर्ण धरती उनका स्वरूप है। 
🌷 धरती से तात्पर्य केवल हमारे सौरमण्डल के इस पृथ्वी ग्रह से नहींं है 
     वरन अन्तरिक्ष मेंं जितने भी ग्रह, नक्षत्र और तारे हैं, उनका भू-मण्डल शिव भार्या पार्वती का स्वरूप है।
🌷 जीव को सर्वप्रथम अपने अपनी निजा शक्ति से उत्पन्न, पल्लवित और पोषित करने के कारण इन्हें दिव्य शक्ति, महा शक्ति, धरती रूपा, माही रूपा, पृथ्वी रूपा, प्राण नाथ, प्रजा नाथ, उदयनाथ, भूमण्डल आदि कहा गया।
🌷 पृथ्वी तत्व मूलाधार चक्र से संबंद्ध है जो गुदा के मध्य सिथत एक वलय है जो अन्य सभी का आधार है। 
    भौतिक जगत के सृजन से पूर्व आदि शक्ति ने अदृश्य वलयों का निर्माण किया जो चक्र कहे जाते हैं।
🌷 यह शिव की निजा शक्ति (व्यक्तिगत सामर्थय) जो उनसे भिन्न नहीं होकर समस्त सृष्टि को प्रकार चलायमान रखती है
🌷 जहां शिव समस्त चराचर जगत में आत्मतत्व है तो यह शक्ति उस चराचर जगत का रूप है।
🌷 शिव समस्त सृषिट में बीज है तो यह शक्ति उस बीज को अपने कलेवर में ढांपती और उसका सरंक्षण करती है।
🌷 जिस प्रकार एक चेहरा दर्पण में प्रतिबिंबित होकर दो अथवा अनेक बिम्बो में दिखाई देकर भी एक ही होता है, उसी प्रकार सृजन के समय माया रचित अनेक कारणों से बाहय अद्वैत बृहम शिव और उनकी निजा शक्ति द्वीआयामी और बहुआयामी हो जाती है।


🌷 महायोगी गोरक्षनाथ ने इस दिव्य शक्ति की सुप्त और जागृत दो सिथतियां बतायी है।
🌷 सुप्त अवस्था में यह सर्पिणी की भांति मूलाधार चक्र में मेरूदण्ड के आधार में सिथत रहती है।
🌷 जाग्रत अवस्था में यह सुषुम्णा नाडी में प्रवेष कर सहस्त्रार चक्र की ओर ऊपर उठती है जो इसका अंतिम लक्ष्य है। 
🌷 मूलाधार चक्र से सहस्त्रार चक्र की यात्रा में प्रत्येक चक्र का भेदन करती हुर्इ यह अपने स्वामी शिव से संगम करती है।
🌷 सुप्त अवस्था में सत, रज और तमस नामक त्रयगुणों की प्रकृति से आवृत और माया के शकित रूप में प्रकट होती है जिससे सभी भाव असितत्व में आते हैं।

हे माता (उदयनाथ) जी आपको सोॐ का प्रणाम है  
अलख आदेश🌷🌷

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