उस कालरूपी ब्रह्म सदाशिव ने एक ही समय शक्ति के साथ 'शिवलोक' नामक क्षेत्र का निर्माण किया था। उस उत्तम क्षेत्र को 'काशी' कहते हैं। वह मोक्ष का स्थान है। यहां शक्ति और शिव अर्थात कालरूपी ब्रह्म सदाशिव और दुर्गा यहां पति और पत्नी के रूप में निवास करते हैं।
इस मनोरम स्थान काशीपुरी को प्रलयकाल में भी शिव और शिवा ने अपने सान्निध्य से कभी मुक्त नहीं किया था। इस आनंदरूप वन में रमण करते हुए एक समय शिव और शिवा को यह इच्छा उत्पन्न हुई कि किसी दूसरे पुरुष की सृष्टि करनी चाहिए, जिस पर सृष्टि निर्माण (वंशवृद्धि आदि) का कार्यभार रखकर हम निर्वाण धारण करें।
ऐसा निश्चय करके शक्ति सहित परमेश्वररूपी शिव ने अपने वामांग पर अमृत मल दिया। फिर वहां से एक पुरुष प्रकट हुआ। शिव ने उस पुरुष से संबोधित होकर कहा, 'वत्स! व्यापक होने के कारण तुम्हारा नाम 'विष्णु' विख्यात होगा।'
इस प्रकार विष्णु के माता और पिता कालरूपी सदाशिव और पराशक्ति दुर्गा हैं।
विष्णु जी की उत्पत्ति
शिव पुराण के अनुसार भगवान शंकर जी ने ही विष्णु जी को उत्पन्न किया। एक बार शिव जी ने पार्वती से कहा कि एक ऐसा पुरुष होना चाहिए जो सृष्टि का पालन भी कर सके। शक्ति के प्रताप से विष्णु जी का आर्विभाव हुआ। वह अद्वितीय थे। कमल जैसे नयन, चतुर्भुजी और कौस्तुकमणि से सुशोभित। सर्वत्र व्यापक होने के कारण उनका नाम विष्णु पड़ा। कथा आती है कि भगवान शंकर ने कहा कि लोगों को सुख देने के लिए ही मैंने तुमको उत्पन्न किया है। कार्य साधना के लिए तुम तप करो। विष्णु जी ने तप किया। लेकिन शंकर जी के दर्शन नहीं हुए। फिर तप किया। क्या देखते हैं कि उनके शरीर से तमाम जल धाराएं बह निकलीं। हर तरफ पानी-पानी हो गया। तभी उनका एक नाम नारायण पड़ा। उन्हीं से सब तत्वों की उत्पत्ति हुई। कथानुसार, सबसे पहले प्रकृति की उत्पत्ति हुई। फिर तीन गुण आए-सत, रज और तम। उसके बाद शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध की उत्पत्ति हुई। फिर पंचभूत की उत्पत्ति हुई।
शिव पुराण के अनुसार भगवान शंकर जी ने ही विष्णु जी को उत्पन्न किया। एक बार शिव जी ने पार्वती से कहा कि एक ऐसा पुरुष होना चाहिए जो सृष्टि का पालन भी कर सके। शक्ति के प्रताप से विष्णु जी का आर्विभाव हुआ। वह अद्वितीय थे। कमल जैसे नयन, चतुर्भुजी और कौस्तुकमणि से सुशोभित। सर्वत्र व्यापक होने के कारण उनका नाम विष्णु पड़ा। कथा आती है कि भगवान शंकर ने कहा कि लोगों को सुख देने के लिए ही मैंने तुमको उत्पन्न किया है। कार्य साधना के लिए तुम तप करो। विष्णु जी ने तप किया। लेकिन शंकर जी के दर्शन नहीं हुए। फिर तप किया। क्या देखते हैं कि उनके शरीर से तमाम जल धाराएं बह निकलीं। हर तरफ पानी-पानी हो गया। तभी उनका एक नाम नारायण पड़ा। उन्हीं से सब तत्वों की उत्पत्ति हुई। कथानुसार, सबसे पहले प्रकृति की उत्पत्ति हुई। फिर तीन गुण आए-सत, रज और तम। उसके बाद शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध की उत्पत्ति हुई। फिर पंचभूत की उत्पत्ति हुई।
ब्रह्मा जी की उत्पत्ति और विष्णु जी से विवाद
जब जल में ही श्रीनारायण सो गए तो उनकी नाभि से एक विशाल कमल उत्पन्न हुआ। इसी कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा जी बोले, मुझे भी ज्ञात नहीं है कि मेरी उत्पत्ति कैसे हुई। कथा प्रसंग के अनुसार, ब्रह्मा जी और विष्णु जी में अधिकारों को लेकर विवाद हुआ। सवाल था कि सृष्टि को उत्पन्न किसने किया। विष्णु जी बोले, मैं सृष्टि का सर्जक भी हूं और पालक भी हूं। तुम्हारी उत्पत्ति तो मेरे से हुई है। मेरे नाभि कमल से। ब्रह्मा जी बोले, मैं सृष्टि का सर्जक हूं। यह विवाद बना रहा।
जब जल में ही श्रीनारायण सो गए तो उनकी नाभि से एक विशाल कमल उत्पन्न हुआ। इसी कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा जी बोले, मुझे भी ज्ञात नहीं है कि मेरी उत्पत्ति कैसे हुई। कथा प्रसंग के अनुसार, ब्रह्मा जी और विष्णु जी में अधिकारों को लेकर विवाद हुआ। सवाल था कि सृष्टि को उत्पन्न किसने किया। विष्णु जी बोले, मैं सृष्टि का सर्जक भी हूं और पालक भी हूं। तुम्हारी उत्पत्ति तो मेरे से हुई है। मेरे नाभि कमल से। ब्रह्मा जी बोले, मैं सृष्टि का सर्जक हूं। यह विवाद बना रहा।
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