ॐ अस्य श्री धूमावती महामन्त्रस्य पिप्पलाद ऋषि: त्रिव्रत् छन्द: श्री ज्येष्ठा धूमावती देवी धूं बीजं स्वाहा शक्ति: धँ कीलकं ममाभीष्ट सिध्यर्थे जपे विनियोग: ।
पिप्पलाद ऋषये नम: शिरसि (सर को स्पर्श करें)
त्रिव्रत् छन्दसे नम: मुखे (मुख को स्पर्श करें)
श्री ज्येष्ठा धूमावती देवतायै नम: हृदय (हृदय को स्पर्श करें)
धूँ बीजाय नम: गुह्ये (गुप्तांग को स्पर्श करें)
स्वाहा शक्तये नम: पादयोः (दोनों पैर को स्पर्श करें)
विनियोगाय नम: सर्वांगे (पुरे शरीर को स्पर्श करें)
त्रिव्रत् छन्दसे नम: मुखे (मुख को स्पर्श करें)
श्री ज्येष्ठा धूमावती देवतायै नम: हृदय (हृदय को स्पर्श करें)
धूँ बीजाय नम: गुह्ये (गुप्तांग को स्पर्श करें)
स्वाहा शक्तये नम: पादयोः (दोनों पैर को स्पर्श करें)
विनियोगाय नम: सर्वांगे (पुरे शरीर को स्पर्श करें)
धां अंगुष्ठाभ्यां नम:।
धीं शिरसे स्वाहा ।
धूं मध्यमाभ्यां नम:।
धैं अनामिकाभ्यां नम:।
धौं कनिष्ठिकाभ्यां नम:।
ध: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।।
धीं शिरसे स्वाहा ।
धूं मध्यमाभ्यां नम:।
धैं अनामिकाभ्यां नम:।
धौं कनिष्ठिकाभ्यां नम:।
ध: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।।
धां ह्रदयाय नम: (ह्रदय को स्पर्श करें)
धीं शिरसे स्वाहा (सिर को स्पर्श करें)
धूं शिखायै वष् (शिखा को स्पर्श करें)
धैं कवचाय हुम् (कंधे को स्पर्श करें)
धौं नेत्रत्रयाय वौषट् (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)
ध: अस्त्राय फट् (सर पर हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं)
धीं शिरसे स्वाहा (सिर को स्पर्श करें)
धूं शिखायै वष् (शिखा को स्पर्श करें)
धैं कवचाय हुम् (कंधे को स्पर्श करें)
धौं नेत्रत्रयाय वौषट् (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)
ध: अस्त्राय फट् (सर पर हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं)
विवर्णा चंचला कृष्णा दीर्घा च म्लिनाम्बरा ।
विमुक्त कुंतला रूक्षा विधवा विरलद्विजा ।।
काकध्वज रथारुढ़ा विलम्बित-पयोधरा ।
शूर्पहस्तातिरूक्षाक्षा धूमहस्ता वरान्विता ।।
प्रव्रद्धघोणा तु भ्रशं कुटिला कुटिलेक्षणा ।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहास्पदा ।।
विमुक्त कुंतला रूक्षा विधवा विरलद्विजा ।।
काकध्वज रथारुढ़ा विलम्बित-पयोधरा ।
शूर्पहस्तातिरूक्षाक्षा धूमहस्ता वरान्विता ।।
प्रव्रद्धघोणा तु भ्रशं कुटिला कुटिलेक्षणा ।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहास्पदा ।।
।। धूं धूं धूमावती ठ: ठ: ।।
धूमावती महाविद्या कवच
ॐ धूं बीजं मे शिर: पातु धूं ललाटं सदाऽवतु ।
धूमा नेत्रयुगं पातु वती कणौं सदाऽवतु ।।
दीर्घा तूदरमध्ये तु नाभिं मे मलिनाम्बरा ।
शूर्प्पहस्ता पातुगुहा रूक्षा रक्षतु जानुनी ।।
मुखं मे पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम् ।
सर्वा विद्याऽवतु कण्ठं विवर्णा बाहुयुग्मकम् ।।
चंचला ह्रदयं पातु दुष्टा पाशर्व सदाऽवतु ।
धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा ।
प्रवृद्धरोमा तु भ्रशं कुटिला कुटिलेक्षणा ।।
क्षुत्पिपासार्दिता देवी भयदा कलहप्रिया ।
सर्वांगे पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी ।।
धूमा नेत्रयुगं पातु वती कणौं सदाऽवतु ।।
दीर्घा तूदरमध्ये तु नाभिं मे मलिनाम्बरा ।
शूर्प्पहस्ता पातुगुहा रूक्षा रक्षतु जानुनी ।।
मुखं मे पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम् ।
सर्वा विद्याऽवतु कण्ठं विवर्णा बाहुयुग्मकम् ।।
चंचला ह्रदयं पातु दुष्टा पाशर्व सदाऽवतु ।
धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा ।
प्रवृद्धरोमा तु भ्रशं कुटिला कुटिलेक्षणा ।।
क्षुत्पिपासार्दिता देवी भयदा कलहप्रिया ।
सर्वांगे पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी ।।
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