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Monday, 25 November 2019

कैलाश पर्वत का रहस्य । Biggest Mystery Of Kailash Paravat





इसके आगे आप खुद ही समझ सकते हैं 👉👉👉भगवान शंकर के निवास स्थान कैलाश पर्वत के पास स्थित है कैलाश मानसरोवर। यह अद्भुत स्थान रहस्यों से भरा है। शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण आदि में कैलाश खंड नाम से अलग ही अध्याय है, जहां की महिमा का गुणगान किया गया है।

*पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी के पास कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के कर-कमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। कैलाश पर्वत के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्यलोक कैलाश पर नहीं चढ़ पाया आज तक, भले ही जीत लिया माउंट एवेरेस्ट, चाँद और मंगल ग्रह #कैलाश पर्वत पर अब तक कोई क्यों नहीं चढ़ पाया #दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत है जो की प्राकृतिक शक्तियों का भण्डार है और विज्ञान भी इसे समझ नही पाया है

कैलाश पर्वत तिब्बत में हिमालय रेंज पर स्थित है। इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा रक्षातल झील हैं। यहां से ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलुज नदियां निकलती हैं। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि यहां भगवान शिव का वास है।

आप यह तथ्य जानते ही होंगे की सुंदर कैलाश पर्वत, जो तिब्बत मे है, वहाँ कोई पर्वतारोही आज तक चढ़ाई नहीं कर पाया | यह सिर्फ़ कहानियों मे सुना गया है की रहस्यमई तिब्बतिअन योद्धा और कवि “मिलरेपा” एकलौते ऐसे इंसान हैं जिन्होने कैलाश पर्वत की चोटी पर विजय प्राप्त की है | क्या आपने कभी सोचा है कि इस पर्वत की चढ़ाई इतनी दुर्गम क्यों है ? क्या है यह शारीरिक दुर्बलता है या इस पर्वत की ऊंचाई है या ऐसा कोई रहस्य जिसको इंसान समझ नहीं सकता |

कैलाश पर्वत और उसके आस पास के बातावरण पर अध्यन कर रहे वैज्ञानिक ज़ार निकोलाइ रोमनोव और उनकी टीम ने तिब्बत के मंदिरों में धर्मं गुरुओं से मुलाकात की उन्होंने बताया कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है जिसमे तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलिपेथी संपर्क करते है।

मानसरोवर पहाड़ों से घिरी झील है, जो पुराणों में ‘क्षीर सागर’ के नाम से वर्णित है। क्षीर सागर कैलाश से 40 किमी की दूरी पर है व इसी में शेष शैय्या पर विष्णु व लक्ष्मी विराजित हो पूरे संसार को संचालित कर रहे है।

कैलाश पर्वत को देखने पर ऐसा लगता है, मानों भगवान शिव स्वयं बर्फ़ से बने शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इस चोटी को ‘हिमरत्न’ भी कहा जाता है। ड्रोल्मापास (Drolma Pass) तथा मानसरोवर तट पर खुले आसमान के नीचे ही शिवशक्ति का पूजन भजन करते हैं। यहां कहीं कहीं बौद्धमठ भी दिखते हैं जिनमें बौद्ध भिक्षु साधनारत रहते हैं। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं। कहा जाता है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था।

तमाम ग्रन्थ, पुराण बताते हैं कि कैलाश पर महादेव का वास है। हजारों लोग कैलाश के दर्शन करने जाते हैं। कुछ लोग तो सीधा महादेव तक पहुंचने की आस लेकर कैलाश मानसरोवर तक जाते हैं लेकिन दूर से ही दर्शन करके लौटना पड़ता है। आज आपको बताते हैं आखिर क्यों कैलाश पर इंसान नहीं जा पाता, वहां आखिर है क्या

कैलाश पर तप करने आए तपस्वी बताते हैं कि कैलाश मानसरोवर, उतना ही प्राचीन है जितनी कि हमारी सृष्टि। कैलाश पर्वत की तरह ही मानसरोवर में भी कुछ अलौकिक शक्तियां मौजूद रहती हैं। जब इस स्थान पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का मेल होता है तो ऐसा लगता है मानों ॐ की ध्वनि सुनाई दी गई हो। जो कि अपने आप में ही शिव की मौजूदगी को प्रमाणित करता है। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है। प्राचीन समय से ही यह मान्यता है कि जब भी गर्मी के मौसम में कैलाश पर्वत की बर्फ पिघलने लगती है तो ऐसी आवाज आती है जैसे मानो मृदंग बज रहा हो। मान्यता तो यह भी है कि जो भी व्यक्ति मात्र एक बार मानसरोवर में डुबकी लगा ले तो उसे रुद्रलोक यानि शिव के लोक के दर्शन हो जाते हैं।

भगवान का स्वरूप, उसका आकार वास्तव में कैसा है इस सवाल का जवाब वाकई किसी के पास नहीं है। ईश्वरीय शक्ति पर विश्वास करने वाले लोग, जिन्हें सामान्य भाषा में आस्तिक कहा जाता है, जिस रूप में उस शक्ति को देखना चाहते हैं, उसे वैसा ही स्वरूप दे देते हैं।

हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं का जिक्र किया गया है, जिनका निवास स्वर्ग में बताया गया है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि महादेव शिव, जिनके हाथ में सृष्टि के विनाश की बागडोर है, अपने परिवार के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। हिमालय की गोद में स्थित कैलाश पर्वत पर आज भी भगवान शिव अपने परिवार, यानि माता पार्वती, भगवान गणपति, भगवान कार्तिकेय के साथ रहते हैं।

वैसे तो ये भी माना जाता है कि भगवान हमेशा हमारे बीच में रहते हैं, उन्हें पहचानना और उन तक पहुंचना केवल उसी व्यक्ति के लिए संभव है जिसके अंदर वाकई अपने ईश्वर को पाने की ललक हो। लेकिन कैलाश के जिस स्थान पर भगवान शिव का वास है वहां किसी के लिए भी पहुंच पाना बेहद कठिन या कह लीजिए असंभव सा ही है।

पौराणिक गाथाओं के अनुसार कैलाश के आसपास वातावारण में कुछ ऐसी रहस्यमयी शक्तियां मौजूद हैं जो किसी भी आम इंसान को भगवान शिव तक पहुंच बनाने नहीं लेकिन ग्यारहवीं शताब्दी में एक बौद्ध भिक्षु ने कैलाश पर्वत पर बसे भगवान शिव के निवास तक पहुंचने की हिम्मत की थी।

इतिहास के अनुसार तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा एक मात्र ऐसे व्यक्ति रहे जो कैलाश पर्वत पर मौजूद रहस्यमयी शक्तियों को हराकर उस स्थान तक पहुंच पाए थे।

विभिन्न धर्मों में ईश्वर के निवास स्थान का उल्लेख किया गया है, जो धरती के बीचो-बीच स्थित है। किसी धर्म में इस स्थान को जन्नत कहा जाता है, कहीं स्वर्ग तो कहीं हेवेन। विभिन्न पौराणिक इतिहास में भी उत्तरी ध्रुव को ही वो स्थान माना गया है जहां देवता निवास करते हैं। पिछले कई वर्षों में वैज्ञानिक इस सवाल को खोजने में लगे हैं कि आखिर कैलाश पर्वत पर ऐसा क्या है जो कोई भी आम इंसान उस स्थान तक नहीं पहुंच पाता, जहां केवल एक बौद्ध भिक्षु ही पहुंचा था। अभी तक वैज्ञानिकों ने जितने भी शोध संपन्न किए हैं, उनके अनुसार एक्सिस मुंड एक ऐसा बिंदु है, जहां आकर धरती और आकाश एक दूसरे से मिलते हैं। इसी बिंदु पर अलौकिक शक्तियों का प्रवाह बहुत तेज गति से बहता है। अगर आप इस थान पर पहुंच गए तो आप भी उन शक्तियों के संपर्क में आ सकते हैं। जिस बिंदु पर आकार धरती और आकाश का मेल होता है, जहां ये अलौकिक शक्तियां प्रवाहित होती हैं, उस स्थान को कैलाश पर्वत कहा जाता है। कैलाश के उस स्थान तक अगर कोई पहुंच जाए, जिसके बारे में कहा जाता है वहां ये शक्तियां होती हैं, तो कोई भी साधारण मनुष्य उनका अनुभव कर सकता है।

पिछले कई सालों से ऋषि-मुनि इस स्थान की बात करते हैं, साथ ही ये भी कहते हैं कि वहां पहुंच बनाना बिल्कुल भी संभव नहीं है। शिव की कृपा से ही वहां उन अद्भुत शक्तियों का वास है। आज भी बहुत से साधक और ऋषि-मुनी अपनी तपस्या के बल पर इस शक्तियों की सहायता से आध्यात्मिक गुरुओं से संपर्क साधते हैं। ऊंचाई के मामले में कैलाश पर्वत, विश्व विख्यात माउंट एवरेस्ट से ज्यादा विशाल तो नहीं है, लेकिन कैलाश की भव्यता उसके आकार में है। ध्यान से देखने पर यह पर्वत शिवलिंग के आकार का लगता है, जो पूरे साल बर्फ की चादर ओढ़े रहता है।

जहां देवी पार्वती ने किया था घोर तप – इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊँचे स्थान है। ड्रोल्मा से नीचे बर्फ़ से सदा ढकी रहने वाली ल्हादू घाटी में स्थित एक किलोमीटर परिधि वाला पन्ने के रंग जैसी हरी आभा वाली झील, गौरीकुंड है। यह कुंड हमेशा बर्फ़ से ढंका रहता है, मगर तीर्थयात्री बर्फ़ हटाकर इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करना नहीं भूलते। साढे सात किलोमीटर परिधि तथा 80 फ़ुट गहराई वाली इसी झील में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी।

गंगा का स्थान – पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहाँ प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं।

मानसरोवर का अर्थ – इस प्रकार यह झील सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था। इसी कारण इसे ‘मानस मानसरोवर’ कहते हैं। दरअसल, मानसरोवर संस्कृत के मानस (मस्तिष्कद्ध) और सरोवर (झील) शब्द से बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- मन का सरोवर। मान्यता है कि ब्रह्ममुहुर्त (प्रातःकाल 3-5 बजे) में देवतागण यहां स्नान करते हैं।

मानसरोवर की महिमा – ऐसा माना जाता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की थी, जो कि इन पर्वतों की तलहटी में स्थित है। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं। हिन्दू उसे ‘कल्पवृक्ष’ की संज्ञा देते हैं।

झील लगभग 320 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में रक्षातल झील है। पुराणों के अनुसार मीठे पानी की मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से भगवान शिव के प्रसन्न होने पर हुई थी। ऐसी अद्भुत प्राकृतिक झील इतनी ऊंचाई पर किसी भी देश में नहीं है। पुराणों के अनुसार शंकर भगवान द्वारा प्रकट किये गये जल के वेग से जो झील बनी, उसी का नाम ‘मानसरोवर’ है

16. राक्षस ताल – राक्षस ताल लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, 84 किलोमीटर परिधि तथा 150 फुट गहरे में फैला है। प्रचलित है कि राक्षसों के राजा रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद भी कहते हैं। एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों को जोडती है।

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