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Saturday, 21 September 2019

Pratyangira devi प्रत्यंगिरा देवी उपाय साधना एवं सिद्धि और शत्रु से बचने के उपाय


Pratyangira devi 

आपने बहुत से मंत्र और उपाय के बारे  में सुना होगा|  और अपनी आवश्यकता अनुसार आपने बहुत से उपाय भी किये होगे| आज कल की जिन्दगी में कोई किसी की कमाई या सुख से सुखी नही है| कोई भी इन्शान किसी को ख़ुश नही देख सकता और उससे नुकसान पहुचने के लिए तरह तरह के उपाय करता रहेता है| जिस की वजह से दुसरे व्यक्ति को तकलीफ और परेशानी होती है| वो अपने दुःख को कम करने के लिए तरह तरह के उपय करता है| फिर भी कही बार उससे सफलता प्राप्त नही हो पाती तो आइये आज जानते है| कुछ ऐसे उपाय जिससे करने से आपको हर दुःख से छुटकारा मिल सकता है|

Pratyangira devi कौन थी और उन्हें इतनी मान्यता क्यों दि जा रही है| प्रत्यंगिरा  एक हिन्दू माता देवी थी| उसका सिर सिंह की तरह है औरबाकी शरीर मानव जैसा है| यह शक्ति से बरपुर है ये विष्णु दुर्गा काली नरसिंह के एकीकृत रूप हैं। इन की शक्ति की बात की जाए तो बलवान शत्रु को परास्त करने वाली देवी का नाम प्रत्यंगिरा है। और इनकी पूजा करने से ऋण, रोग, और शत्रु को निष्प्रभावी करने के सभी उपाय, शत्रु नाश के लिए विफल हो जाते हैं।
आपने इस मंत्र को मंगलवार को यह मंत्र उपाय के साथ पढना है और इस मंत्र को हर रोज पूजा करते समय भी पढना है| ऐसा करने से आपके घर के मानसिक,आर्थिक समस्या दूर होगी साथ ही दुश्मन से भी बच पाए गे|

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि रुपेण संस्थिता | या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रुपेण संस्थिता | नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||

आपको प्रति गिरा देवी के मंदिर में जा कर इस प्रकार पूजा करनी होगी| आप कोई भी एक मंगलवार की रात्री को 10 बजे के बाद आरंभ कर सकते है| आपको स्नान कर लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर बैठ होगा| फिर आपको एक कागज़ लेना है औरउसपर हल्दी के घोल से अनार की अथवा पिपल की कलम से एक स्त्री का चित्र बनाये| यह आवश्यक नही है की चित्र बहुत सुन्दर हो| फिर इस चित्र को बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित कर दे| अब चित्र का प्रत्यंगिरा देवी मानकर सामान्य पुजन करे| संभव हो तो लाल पुष्प अर्पित करे.शहद ओर द्राक्ष को मिलाकर भोग रूप मे अर्पित करे.जिसे साधक को अंत मे स्वयं खाना है| इसके बाद साधक अपने कार्य मे विजय प्राप्ति का संकल्प लेकर,निम्न प्रत्यंगिरा गायत्री का 11 माला जाप रूद्राक्ष माला से करे|

शत्रु द्वारा बारम्बार तन्त्र क्रियाओं के किये जाने पर शत्रु यदि रुकने की बजाए और गहरे तन्त्र आघात देने लगेंप्राण हरण पर ही उतर आएँ अर्थात मानव संवेदनाओं की सीमा को लाँघ कर घिनौनी हरकतों पर उतर आएँ तो उसकी क्रिया को उस पर वापिस इस तरह से लौटना की शत्रु को आपके दर्द का एहसास हो इसे विपरीत प्रत्यंगिरा कहा जाता है प्रत्यंगिरा और विपरीत प्रत्यंगिरा में ये भेद है की प्रत्यंगिरा शक्ति तो सिर्फ वापिस लौटती है किन्तु विपरीत प्रत्यंगिरा शत्रु को ही वापिस चोट पहुंचाती है और खुद कीनिश्चित रूप से रक्षा करती है इस प्रयोग के बाद शत्रु आप पर दोबारा यह प्रयोग कभी नहीं कर सकता उसकी वह शक्ति खत्म हो जाती है I
मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं प्रत्यंगिरे मां रक्ष रक्ष मम शत्रून् भंजय भंजय फें हुं फट् स्वाहा I
विनियोग : 
अस्य श्री विपरीत प्रत्यंगिरा मंत्रस्य भैरव ऋषि:अनुष्टुप् छन्द:श्री विपरीत प्रत्यंगिरा देवता ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग: I
मालामंत्र

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ कुं कुं कुं मां सां खां पां लां क्षां ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ ॐ ह्रीं बां धां मां सां रक्षां कुरु ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ स: हुं ॐ क्षौं वां लां धां मां सा रक्षां कुरु ॐ ॐ हुं प्लुं रक्षा कुरु ॐ नमो विपरीतप्रत्यंगिरायै विद्याराज्ञी त्रैलोक्य वंशकरि तुष्टिपुष्टिकरि सर्वपीड़ापहारिणि सर्वापन्नाशिनि सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिनि मोदिनि सर्वशस्त्राणां भेदिनि क्षोभिणि तथा परमंत्र तंत्र यंत्र विषचूर्ण सर्वप्रयोगादीन् अन्येषां निवर्तयित्वा यत्कृतं तन्मेSस्तु कपालिनि सर्वहिंसा मा कारयति अनुमोदयति मनसा वाचा कर्मणा ये देवासुर राक्षसास्तिर्यग्योनि सर्वहिंसका विरुपकं कुर्वन्ति मम मंत्र तंत्र यन्त्र विषचूर्ण सर्वप्रयोगादीनात्म हस्तेन।

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