सातवीं ईस्वी में जब पोप ग्रेगरी, लोगों को ईसाई बनाने की मुहिम में जुटे थे, तो उन्होंने अपने प्रचारकों से अपील की कि वो पगन यानी बुतपरस्ती की परंपरा वाले लोगों की परंपराओं का विरोध न करें बल्कि उनके त्यौहारों का ईसाईकरण कर दें.
तभी से समहैन त्यौहार ऑल सेंट्स डे बन गया. इस त्यौहार में मर चुके लोगों की आत्माओं से संवाद अच्छा माना जाने लगा. ऑल सेंट्स डे को ऑल हैलौज़ डे भी कहते थे. इससे पहले की रात को हैलोज़ इवनिंग यानी हैलोवीन कहा जाने लगा.
चर्च की शुरुआती परंपराओं में बुतपरस्तों यानी पगन परंपरा की अहम बुनियाद आत्माओं से संवाद भी शामिल हो गया.
भूत-प्रेत और जिन्नों का सवाल सिर्फ़ ईसाई धर्म का नहीं. दूसरे मज़हबों में भी इन्हें लेकर तर्क-वितर्क होते रहे हैं. हिंदू धर्म में तो बाक़ायदा गुज़री हुई आत्माओं का आह्वान किया जाता है. तंत्र-मंत्र में यक़ीन करने वाले अक्सर ये काम करते हैं. अघोरी संप्रदाय के लोग इसके लिए मशहूर हैं. पित्र पक्ष में हिंदू धर्म के लोग अपने गुज़र चुके पितरों को तर्पण देते हैं. माना जाता है कि आत्माएं वापस इस दुनिया में आती हैं. उनका स्वागत-सत्कार होता है.
भूतों के प्रकार :
हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।
इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है।
इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है।
जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध,
द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा
है अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति
दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वह भी भूत
बनकर भटकता है। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त
करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग
अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते
वे उन आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं।
धर्म के नियम अनुसार जो लोग तिथि और पवित्रता को नहीं मानते हैं, जो ईश्वर, देवता और गुरु का अपमान करते हैं और जो पाप कर्म में ही सदा रत रहते हैं ऐसे लोग आसानी से भूतों के चंगुल में आ सकते हैं।
इनमें से कुछ लोगों को पता ही नहीं चल पाता है कि हम पर शासन करने वाला कोई भूत है। जिन लोगों की मानसिक शक्ति बहुत कमजोर होती है उन पर ये भूत सीधे-सीधे शासन करते हैं।
जो लोग रात्रि के कर्म और अनुष्ठान करते हैं और जो निशाचारी हैं वह आसानी से भूतों के शिकार बन जाते हैं। हिन्दू धर्म अनुसार किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात्रि में नहीं किया जाता। रात्रि के कर्म करने वाले भूत, पिशाच, राक्षस और प्रेतयोनि के होते हैं।
इनमें से कुछ लोगों को पता ही नहीं चल पाता है कि हम पर शासन करने वाला कोई भूत है। जिन लोगों की मानसिक शक्ति बहुत कमजोर होती है उन पर ये भूत सीधे-सीधे शासन करते हैं।
जो लोग रात्रि के कर्म और अनुष्ठान करते हैं और जो निशाचारी हैं वह आसानी से भूतों के शिकार बन जाते हैं। हिन्दू धर्म अनुसार किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात्रि में नहीं किया जाता। रात्रि के कर्म करने वाले भूत, पिशाच, राक्षस और प्रेतयोनि के होते हैं।
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