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Thursday, 22 August 2019

यमराज की मृत्यु कैसी हुई ?? How Did Yamraj Die ??




यमराज की मृत्यु कैसी हुई ??
कहा जाता है कि प्राचीनकाल में कालंजर में शिवभक्त राजा श्वेत राज्य करते थे। वृद्ध होने पर राजा श्वेत पुत्र को राज्य सौंपकर गोदावरी नदी के तट पर एक गुफा में शिवलिंग स्थापित कर शिव की आराधना में लग गए। अब वे राजा श्वेत से महामुनि श्वेत बन गए थे। एक निर्जन गुफा में मुनि ने शिवभक्ति का प्रकाश फैलाया था। श्वेतमुनि को न रोग था न शोक; इसलिए उनकी आयु पूरी हो चुकी है, इसका आभास भी उन्हें नहीं हुआ। उनका सारा ध्यान शिव में लगा था। वे अभय होकर रुद्राध्याय का पाठ कर रहे थे और उनका रोम-रोम शिव के स्तवन से प्रतिध्वनित हो रहा था।आयु समाप्त होने के बाद यमदूतों ने मुनि के प्राण लेने के लिए जब गुफा में प्रवेश किया तो गुफा के द्वार पर ही उनके अंग शिथिल हो गए। वे गुफा के द्वार पर ही खड़े होकर श्वेतमुनि की प्रतीक्षा करने लगे। कहते हैं कि जब यमदूत बलपूर्वक श्वेतमुनि को वहां से ले जाने लगे तो वहां श्वेतमुनि की रक्षा के लिए शिव के गण प्रकट हो गए। भैरव ने यमदूत मुत्युदेव पर डंडे से प्रहार कर उन्हें मार दिया।
इधर जब मृत्यु का समय निकलने लगा तो चित्रगुप्त ने यमराज पूछा- 'श्वेत अब तक यहां क्यों नहीं आया? तुम्हारे दूत भी अभी तक नहीं लौटे हैं। तभी कांपते हुए यमदूतों ने यमराज के पास जाकर सारा हाल सुनाया। मृत्युदेव की मृत्यु का समाचार सुनकर क्रोधित यमराज हाथ में यमदंड लेकर भैंसे पर सवार होकर अपनी सेना (चित्रगुप्त, आधि-व्याधि आदि) के साथ वहां पहुंचे। इधर, शिवजी के पार्षद पहले से ही वहां खड़े थे। यमराज जब बलपूर्वक श्वेतमुनि को ले जाने लगे तब सेनापति कार्तिकेय ने शक्तिअस्त्र यमराज पर छोड़ा जिससे यमराज की भी मृत्यु हो गई।

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यमदूतों ने भगवान सूर्य के पास जाकर सारा समाचार सुनाया। अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर भगवान सूर्य ब्रह्माजी व देवताओं के साथ उस स्थान पर आए, जहां यमराज अपनी सेना के साथ मरे पड़े थे। तब देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की। तब भगवान शिव प्रकट हो गए। उनकी जटा में पतित-पावनी गंगा रमण कर रही थीं, भुजाओं में फुफकारते हुए सर्पों के कंगन पहन रखे थे, वक्षस्थल पर भुजंग का हार और कर्पूर के समान गौर शरीर पर चिताभस्म का श्रृंगार सुन्दर लग रहा था।
देवताओं ने कहा- 'भगवन्! यमराज सूर्य के पुत्र हैं। वे लोकपाल हैं और आपने ही इनकी धर्म-अधर्म व्यवस्था के नियंत्रक के रूप में नियुक्ति की है। इनका वध सही नहीं है। इनके बिना सृष्टि का कार्य असंभव हो जाएगा अत: सेना सहित इन्हें जीवित कर दें नहीं तो अव्यवस्था फैल जाएगी।'
भगवान शंकर ने कहा- 'मैं भी व्यवस्था के पक्ष में हूं। मेरे और भगवान विष्णु के जो भक्त हैं, उनके स्वामी स्वयं हम लोग हैं। मृत्यु का उन पर कोई अधिकार नहीं होता। स्वयं यमराज और उनके दूतों का उनकी ओर देखना भी पाप है। यमराज के लिए भी यह व्यवस्था की गई है कि वे भक्तों को प्रणाम करें।'
फिर भगवान शिव ने देवताओं की बात मानकर यमराज को प्राणदान दे दिया। शिवजी की आज्ञा से नंदीश्वर ने गौतमी नदी का जल लाकर यमराज और उनके दूतों पर छिड़का जिससे सब जीवित हो उठे। यमराज ने श्वेतमुनि से कहा- 'संपूर्ण लोकों में अजेय मुझे भी तुमने जीत लिया है, अब मैं तुम्हारा अनुगामी हूं। तुम भगवान शिव की ओर से मुझे अभय प्रदान करो।'
श्वेतमुनि ने यमराज से कहा- 'भक्त तो विनम्रता की मूर्ति होते हैं। आपके भय से ही सत्पुरुष परमात्मा की शरण लेते हैं।' प्रसन्न होकर यमराज अपने लोक को चले गए। शिवजी ने श्वेतमुनि की पीठ पर अपना वरदहस्त रखते हुए कहा- 'आपकी लिंगोपासना धन्य है, श्वेत! विश्वास की विजय तो होती है।'
श्वेतमुनि शिवलोक चले गए। यह स्थान गौतमी के तट पर मृत्युंजय तीर्थ कहलाता है। मृत्यु को कोई जीत नहीं सकता। स्वयं ब्रह्मा भी चतुर्युगी के अंत में मृत्यु के द्वारा परब्रह्म में लीन हो जाते हैं। लेकिन भगवान शिव ने अनेक बार मृत्यु को पराजित किया है इसलिए वे 'मृत्युंजय' और 'काल के भी काल' 'महाकाल' कहलाते हैं।



  

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