रम्भा तृतीया व्रत ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन रखने का विधान है । इसे रम्भा तीज के नाम से भी जाता है । हिन्दू मान्यतानुसार सागर मंथन से उत्पन्न हुए 14 रत्नों में से एक रम्भा थी । कहा जाता है कि रम्भा बेहद सुंदर थी । रम्भा तृतीय के दिन कई साधक रम्भा के नाम से साधना कर सम्मोहनी शक्तियां प्राप्त करते हैं । रम्भा अप्सरा की सिद्धि प्राप्त करने पर, रम्भा साधक के जीवन में एक छाया के रूप में सदैव साथ रहती हैं और वह साधक की सभी मनोकामनायें जल्द ही पूरी कर देती हैं । फलस्वरूप साधक का जीवन प्यार और खुशियों से भर जाता है । रम्भा अप्सरा साधना 9 दिन की होती है जो रात में की जानी चाहिए । यह साधना पूर्णिमा, अमावस्या या शुक्रवार को शुरू की जा सकती हैं, लेकिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को करने से ये विशेष फल प्रदान करती है यानी सिद्धि की संभावना बढ़ जाती है
रम्भा तृतीया व्रत ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन रखने का विधान है । इसे रम्भा तीज के नाम से भी जाता है । हिन्दू मान्यतानुसार सागर मंथन से उत्पन्न हुए 14 रत्नों में से एक रम्भा थी । कहा जाता है कि रम्भा बेहद सुंदर थी । रम्भा तृतीय के दिन कई साधक रम्भा के नाम से साधना कर सम्मोहनी शक्तियां प्राप्त करते हैं । रम्भा अप्सरा की सिद्धि प्राप्त करने पर, रम्भा साधक के जीवन में एक छाया के रूप में सदैव साथ रहती हैं और वह साधक की सभी मनोकामनायें जल्द ही पूरी कर देती हैं । फलस्वरूप साधक का जीवन प्यार और खुशियों से भर जाता है । रम्भा अप्सरा साधना 9 दिन की होती है जो रात में की जानी चाहिए । यह साधना पूर्णिमा, अमावस्या या शुक्रवार को शुरू की जा सकती हैं, लेकिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को करने से ये विशेष फल प्रदान करती है यानी सिद्धि की संभावना बढ़ जाती है
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