दशमहाविद्या अर्थात महान विद्या रूपी देवी। महाविद्या, देवी दुर्गा के दस रूप हैं, जो अधिकांश तान्त्रिक साधकों द्वारा पूजे जाते हैं, परन्तु साधारण भक्तों को भी अचूक सिद्धि प्रदान करने वाली है। इन्हें दस महाविद्या के नाम से भी जाना जाता है। ये दसों महाविद्याएं आदि शक्ति माता पार्वती की ही रूप मानी जाती हैं। दस महाविद्या विभिन्न दिशाओं की अधिष्ठातृ शक्तियां हैं। भगवती काली और तारा देवी- उत्तर दिशा की, श्री विद्या (षोडशी)- ईशान दिशा की, देवी भुवनेश्वरी, पश्चिम दिशा की, श्री त्रिपुर भैरवी, दक्षिण दिशा की, माता छिन्नमस्ता, पूर्व दिशा की, भगवती धूमावती पूर्व दिशा की, माता बगला (बगलामुखी), दक्षिण दिशा की, भगवती मातंगी वायव्य दिशा की तथा माता श्री कमला र्नैत्य दिशा की अधिष्ठातृ है।
कहीं-कहीं 24 विद्याओं का वर्णन भी आता है। परंतु मूलतः दस महाविद्या ही प्रचलन में है। इनके दो कुल हैं। इनकी साधना 2 कुलों के रूप में की जाती है। श्री कुल और काली कुल। इन दोनों में नौ- नौ देवियों का वर्णन है। इस प्रकार ये 18 हो जाती है। कुछ ऋषियों ने इन्हें तीन रूपों में माना है। उग्र, सौम्य और सौम्य-उग्र। उग्र में काली, छिन्नमस्ता, धूमावती और बगलामुखी है। सौम्य में त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी और महालक्ष्मी (कमला) है। तारा तथा भैरवी को उग्र तथा सौम्य दोनों माना गया हैं देवी के वैसे तो अनंत रूप है पर इनमें भी तारा, काली और षोडशी के रूपों की पूजा, भेद रूप में प्रसिद्ध हैं। भगवती के इस संसार में आने के और रूप धारण करने के कारणों की चर्चा मुख्यतः जगत कल्याण, साधक के कार्य, उपासना की सफलता तथा दानवों का नाश करने के लिए हुई। सर्वरूपमयी देवी सर्वभ् देवीमयम् जगत। अतोऽहम् विश्वरूपा त्वाम् नमामि परमेश्वरी।। अर्थात् ये सारा संसार शक्ति रूप ही है। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।[1]
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